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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सोरठी [82] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कहती ह-(सखी!) मेरा मन रूपी भौंरा (मोहन के) चरण-कमलों पर लुब्ध हो गया है। चित्त- (रूपी) चकोर (उन) चरणों के नख- (रूपी) चन्द्रमा को नेत्रों के पलक गिराना भूलकर एकटक देखता वहीं बिलम गया। ये (दोनों) मुझसे बिना कहे ही उठकर चले गये, उनके हाथ से निकल जाने का मुझे पता भी नहीं चला। अब देखती हूँ तो शरीर में वे (दोनों ही) नहीं हैं; पता नहीं, उन्होंने चित्त में क्या ठाना है। (जब से गये) तब से लौटकर फिर (उन्होंने) मेरी ओर ताका तक नहीं, उनके चरण-नखों से ही अनुराग कर लिया। वे (श्यामसुन्दर) तो अपना ही स्वार्थ देखने वाले हैं, दूसरे की पीड़ा का उन्हें क्या पता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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