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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सुघराई [138] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-अरी (सखी!) मोहन ने वंशी बजाकर मुझे विमुग्ध कर लिया, मैं उन्हीं पर मोहित हूँ, (निश्चय) मोहित हूँ। संध्या के समय वे मेरे आँगन में (द्वार के सम्मुख) होकर निकले, तभी से मैं उन्हीं की (उनके आने के पथ की) ओर देख रही हूँ। किसका शरीर, घर की सुधि किसे, हरि कौन हैं और मैं भी कौन थी (मुझे तो यह पता ही नहीं) । तेरे कहने से (मैं भी) वाणी से बोल रही हूँ, (नहीं तो) मैं तभी से अपलक उनकी प्रतीक्षा कर रही हूँ। वे न तो मिलते हैं और न अपने संग से (मुझे) छोड़ते हैं; तुझसे ही पूछती हूँ कि (बता) मैं क्या करूँ। जब से मेरा मन उन्होंने आकर्षित कर लिया तब से (वे) श्यामसुन्दर इधर फिर नहीं आये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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