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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सूही[337] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) इन – (नेत्र-) के लिये हारना-जीतना दोनों बराबर है। जिनके चित्त में सदा लोभ बसता है, वे जान ही नहीं पाते कि लाभ-हानि किसे कहा जाता है। जिन्होंने ऐसी हठ पकड़ ली है, उन्हें लज्जा क्या होगी। ये (तो) श्यामसुन्दर के रूप में भूले हैं, अब इन नेत्रों के वश की क्या बात है! ऐसे लोगों को ही सब मानते हैं, जिनकी घर-घर में निन्दा होती है। ये हमारे स्वामी पर जाकर लुब्ध हो गये, अब कानों से किसी की पुकार नहीं सुनते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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