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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कान्हरौ [180] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी!) ऐसी बातों से कहीं बड़ाई होती है। (ये नेत्र) श्याम की छबि-राशि लूटते हैं, इन्होंने (यह) अनोखी (अद्भुत) सम्पत्ति पा ली है। ये अत्यन्त गर्विष्ठ हो चले हैं, अतः थोड़े (सुख-सम्मान) – में ही उघड़ पड़ेंगे (प्रकाश में आ जायँगे) । (स्वयं) उस – (रूप-राशि— ) का आस्वादन करते और गिराते (भी) हैं, पर किसी – (और-) को देने का नहीं, ओछे – (अनुदार-) के घर में सम्पत्ति (जो) आ गयी है। यह (श्याम का सौन्दर्य रूपी) सम्पत्ति तो तीनों लोकों की है, (जो) सब-की-सब इन्होंने अपनी बना ली है। हमारे स्वामी ने (इन्हें) धोखे से साथ ले लिया, किसी को बतलाया (भी) नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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