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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौड़ मलार [39] गोपी श्रीनन्दजी के द्वार पर ही (खड़ी) उनका घर पूछ रही है। (वह) इधर-से-उधर जाती है, (और) फिर उधर-से-इधर आती है; वह नन्दालय के पास से ही गुजरती है। (किंतु नन्द भवन) उसे बिलकुल नहीं दीखता। श्रीनन्द नन्दन – (को पाने— ) के लिये (वह) व्रजबाला अत्यन्त व्याकुल हो रही है, उन्हें (उसने) अपना तन-मन— सब कुछ समर्पित कर दिया है, लोक लज्जा छोड़ दी है, (बल्कि सच तो यह है कि) लज्जा इसे देखकर स्वयं लज्जित हो गयी हिया; (अतएव) श्यामसुन्दर से प्रेम करने में (इसने) कोई भय नहीं किया। दही का नाम (तो इसे) भूल गया है; (बदले में) कहती है— ‘श्याम लो।’ (उसे) यह भी स्मरण नहीं कि कहीं मेरा घर (भी) है या नहीं। सूरदासजी कहते हैं कि (जैसे) चूना और हल्दी का रंग मिलकर एक (लाल) हो जाते हैं अथवा जैसे शरीर के साथ छाया मिली रहती है (कभी संग नहीं छोड़ती), वैसे ही यह भले-बुरे की मर्यादा मिटा मेरे स्वामी (श्रीकृष्ण)— से मिल गयी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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