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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग टोड़ी[332] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी!) अब मैंने भी यह हठ पकड़ लिया है कि (अब) इन – (नेत्र-) को रोककर रखूँगी, ये जाने नहीं पायेंगे, इन्होंने क्यों मेरी उपेक्षा की। आज तक (तो) मैं मौन बनी रही, अपने मन को ही समझा लेती थी, किंतु यह (मन) भी नेत्रों के ही अनुकूल होकर (मोहन से) मिल गया और (मैं) इन्हें भाग जाते देखती रही। अरी सखी! सुन, ये कभी के मिले हैं, यह इनका ही षड्यन्त्र है। मैंने अब तक यह बात नहीं समझी थी, इसलिये व्यर्थ ही चित्त में खेद करती थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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