विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ[254] सूरदासजी की शब्दों में एक गोपी कह रही ह-सखी! (मेरे) नेत्र गये, सो फिर लौटे (ही) नहीं। जैसे प्रतिष्ठित (भले) व्यक्ति की मर्यादा नष्ट हो जाय तो पुनः लौटकर नहीं आती, जैसे बचपन फिर नहीं आता और युवावस्था भी (बीत जाने पर) दुबारा नहीं आती, जैसे ढुलकता हुआ पानी पीछे नहीं लौटता, आगे-आगे ही जाता है, जैसे कुलवधू अपने कुल से (आचार भ्रष्ट होकर) बहिष्कृत हो जाने पर पुनः अपने कुल में सम्मिलित नहीं हो पाती, वैसी ही दशा श्यामसुन्दर की शरण में जाने पर इन – (नेत्र-) की भी हो गयी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |