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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग अडाना [102] सूरदासजी के शब्दों में श्रीराधा कह रही ह-अरी सखी! कौन जानता है कि श्यामसुन्दर ने (मुझे) क्या कर दिया। मन में समझती हूँ, (किंतु) मुख से वर्णन नहीं हो पाता; उस (शोभा) – का रस कुछ थोड़ा नेत्रों ने पिया है। मैं अकेली (अपने) आँगन में खड़ी थी कि (मोहन ने) अचानक आकर मुझे दर्शन दिया; उधर (उनकी ओर) देखते ही मुझे कुछ भी सुधि-बुधि नहीं रही, मेरा मन (ही) उन्होंने (दर्शन के) बदले में ले लिया! उसी आनन्द – (दर्शनानन्द— ) को पाने के लिये दारुण दुःख में जलती रहती हूँ, ह्रदय क्षण-क्षण में जलता और शीतल होता रहता है। (उनकी) उपमा के योग्य सभी सुन्दर वस्तुओं को ह्रदय में ले आती हूँ, (किंतु) उपमा देने के लिये दूसरा कोई मिलता (ही) नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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