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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग रामकली [68] तब सुचतुरा (श्रीराधा) मन में प्रसन्न हो गयीं। श्यामसुन्दर का (अपने ऊपर) सनातन (शाश्वत) प्रेम समझकर (वे) अत्यन्त आनन्द में लीन हो गयीं और सोचने लगीं कि ‘मैं प्रकृति हूँ, वे पुरुष हैं, मैं स्त्री हूँ, वे मेरे (नित्य) पति हैं— यह बात मैं क्योंकर भूल गयी थी? (मेरी) माता कौन, पिता कौन और (मेरे) भाई (भी) कौन? यह तो (केवल इस अवतार की इन लोगों से) नवीन भेंट (जान-पहचान) है। (श्यामसुन्दर से यह मिलन तो) युग-युग और जन्म-जन्म की लीला है।’ सूरदासजी कहते हैं— (इस प्रकार) प्रियतमा श्रीराधा ने जान लिया कि यह मेरे स्वामी की महिमा है, इसलिये (कुछ कहने में) वे विवश हो गयीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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