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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग रामकली[334] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-सखी! जिसका जैसा स्वभाव पड़ गया है, (अथवा) जिसने जो हठ पकड़ ली है, कोई करोड़ों उपाय करे तो भी वह छूटती नहीं। बचपन से ही इन – (नेत्र-) के ये ढंग रहे हैं कि ये नटखट, अस्थिर और अन्यायी हैं, मेरे रोकते-रोकते भी उठकर दौड़ पड़े और जाकर श्याम के सेवक बन गये। ये हीन नक्षत्र में उत्पन्न हुए हैं, अतः डंके की चोट लम्पट हो गये। भला, उनका साथ करने से क्या लाभ, जो दूसरे के यहाँ जाकर बस गये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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