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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग [46] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है— (सखी!) श्रीहरि के मुख की मुसकराहट पर मैं बिक गयी; फलतः (अब) परवश हुई रात-दिन उनके साथ घूमती हूँ, यह (मेरा) सहज स्वभाव-सा बन गया है। नेत्रों ने (उन्हें) देखकर दूत का काम किया और मन को उनसे इस प्रकार मिला दिया, जैसे दूध में पानी (मिल जाता है); (इधर) कामदेव ने हमारे ह्रदय से लज्जा को पकड़ ले जाकर श्रीहरि को सौंप दिया। (अतः) सखी! सुन, (अब तो) सारा संसार मुझे श्यामसुन्दर की दासी जान गया, (वे) जो-जो कहते हैं, (उनकी) आज्ञा मस्तक पर धारण कर (मैं) वही-वही करती हूँ। कुल की लज्जा, लोक की मर्यादा, पति तथा कुटुम्बियों का परिचय त्यागकर जैसे नदी समुद्र में मिलती है, (वैसे ही मेरी) बुद्धि की बूँद उन- (श्यामसुन्दर— ) में खो (विलीन हो) गयी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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