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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी[296] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी!) यह सब (अनुचित कार्य मेरे) नेत्रों को ही (प्रिय) लगता है, इन्होंने अपने ही घर को कलंकित किया और रोकते-रोकते उठकर भाग गये। जैसे बालक माता से भोजन के लिये कुछ माँगता हुआ झगड़ने लगता है, उसी प्रकार ये अत्यन्त हठ करते हुए, एकटक हो, पलकें (भी) नहीं गिराते। (ये मुझसे) कहते हैं, ‘हमें श्यामसुन्दर की रूप-माधुरी दो?’ और (इस प्रकार) प्रेम मग्न होकर रोते हैं। पता नहीं श्यामसुन्दर ने इन्हें क्या खिला दिया है जो ये उनकी रूप-माधुरी में (ही) निमग्न हो गये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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