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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ[347] सूरदासजी कहते ह-व्रजनारियाँ श्यामसुन्दर के ओठों – (के संयोग-) में बजी कोमल वंशी-ध्वनि सुनते ही ऐसी चकित हो गयीं कि (उन्हें) आँखों की बात भूल गयी। जो जैसे (जिस दशा में) थीं, वह वैसे ही रह गयीं, (उन्हें) सुख या दुःख जो भी हुआ, उसका वर्णन नहीं हो सकता। पलकें गिराना भूलकर (वे) सब-की-सब एकटक चित्र में लिखी-सी रह गयी; मुरली का स्वाभाविक गान सुनकर किसी को (अपनी कुछ) सुधि रही, किसी को कुछ भी सुधि न रही; उस शब्द को कान से सुनने पर उन्हें घर की तथा पति की भी सुधि नहीं रही। वे परस्पर कहने लग-(मोहन को हमारी) आँखों से भी (अपनी) वंशी अत्यधिक प्यारी है, वे (आँखें) तो शत्रु ही थीं, पर वह (वंशी तो हमारी) सौत है, यह तो अद्भुत ही विपत्ति उत्पन्न हो गयी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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