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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गूजरी[321] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र कुछ विचार नहीं करते; यद्यपि (वे) हठपूर्वक (विवश होकर) हार जाते हैं, फिर भी वे मोहन के आमने-सामने युद्ध करते हैं। वे श्यामसुन्दर की (नित्य) नवीन शोभा को अत्यन्त आकुलतापूर्वक देखते हुए शिथिल (मग्न) हो जाते हैं और अपार तुष्टि पाते हैं। बार-बार आवेश में आकर सिंह के समान कूदते हुए घूँघट के वस्त्र को फाड़ते (हटा देते) हैं। रोष के आवेश में भरकर देखते हुए बुद्धि के बल एवं कुल के अभिमान को भौंहों द्वारा निवारण करते हैं और व्यूहों के समूह रूप श्यामसुन्दर के अंगों को अवज्ञापूर्वक देखते हुए पलकें नहीं गिराते हैं। ये (मेरे नेत्र रूपी) सुन्दर योधा थके होने के कारण संकोच करते हैं, फिर भी साहस करके बार-बार (श्यामसुन्दर को देखने के) आनन्द को सँभालते (उसका स्मरण करते) हैं। वे उस स्वरुप में मग्न होकर (उसी ओर) व्याकुल होकर झुके, वहाँ से हटाये हटते नहीं, एकटक (निमेषशून्य) बने रहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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