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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सूही[255] सूरदासजी की शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी!) जब से (मेरे) नेत्र मुझे छोड़कर गये, (तभी से इनके साथ) इन्द्रियाँ (भी) चली गयीं, शरीर से मन चला गया; (अब) उनके बिना (मुझे) चिन्ता लगी है। वे (नेत्र) तो निर्दय हैं, (किंतु) मेरे चित्त में (उनके प्रति) मोह है; क्या करूँ, मैं व्याकुल हो गयी हूँ। (वहाँ तो) गुरुजनों ने (मुझे) छोड़ दिया और यहाँ इनके द्वारा (भी) मैं त्याग दी गयी; मेरे हिस्से में तो केवल जंजाल ही आया। सखी! मैं न इधर की रही, न उधर की, भटकते-भटकते अनाथ हो गयी; (किंतु) वे सब (नेत्र, इन्द्रियाँ, मन) जाकर श्यामसुन्दर से मिल गये और उनका दर्शन करके सनाथ हो गये (यही सुन्दर हुआ) । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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