विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग मलार[235] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र (मोहन के) नेत्रों में ही समा (लीन हो) गये; (अब वे) एक पल के लिये भी हटाने से (उसी प्रकार) नहीं हटते; जैसे (कमल के) रस में उलझे हुए भौंरे। प्रेम के पराग में वे लुब्ध हो गये हैं, जिससे (उनके) मन की गति पंगु (शिथिल) होकर उन्हें (अपनी) सुधि (इस प्रकार) भूल गयी, मानो दो खंजन मिलकर झगड़ते देखकर लज्जित हो गये हों। उन्हें मन, वाणी तथा कर्म से भी पलक की ओट में होना अच्छा नहीं लगता (और पलक गिरने पर उनको) प्रत्येक क्षण युग के समान जान पड़ता है! ये (नेत्र तो) श्यामसुन्दर के वश हो गये; जिस पर बीतती (जिस पर कष्ट आता) है, वही (उसकी पीड़ा) जानता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |