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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल[194] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखियों! हमारे) नेत्र तो आनन्द करते हैं और हम (सब) दुःख पाती हैं; ऐसा कौन है, जो दूसरे की पीड़ा समझ सके, जिसे हम उसे कहकर सुनायें। इसलिये सबसे अच्छा चुप रहना ही है, कहकर तो अपना सम्मान खोना है। नेत्र, मन तथा इन्द्रियाँ तो हमें छोड़ श्यामसुन्दर से प्रेम करके आनन्द मनाती हैं। वे (नेत्रादि इन्द्रियाँ) तो अपने हाथ से गयीं ही, (अब) व्यर्थ अपने चित्त को भ्रम में क्यों डालें। श्यामसुन्दर तो चतुर-शिरोमणि हैं, उन्हीं को सब रहस्य बता दें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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