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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी[165] (कोई गोपी कह रही ह-सखी!) जो अपना ही स्वार्थ देखता है, उसकी सद्गति नहीं होती। उन्हें विधाता ने क्यों उत्पन्न किया, यह सोचकर (हम सब)गोपियाँ पश्चात्ताप करती हैं। सब (मन-इन्द्रियादि) साथ ही उत्पन्न हुईं, सबका एक साथ पालन-पोषण हुआ और साथ ही (हम) सब बड़े हुए हैं; (किंतु) जब उन – (मन-इन्द्रियाद-) का चित्त में आश्रय किया (कि अब ये कुछ सहायता करेंगे), तभी (सब मुझे) छोड़कर चले गये। ये ऐसे स्वामी का कार्य करने वाले हैं, उनको श्यामसुन्दर मानते (उनका आदर करते हैं) । सूरदासजी कहते ह-सुनो! अब प्रकट रूप में (यह) कहने में आता है कि उनके ऐसे (खोट-न करने योग्य) कार्य हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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