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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग जैतश्री [66] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी!) व्रज में निवास करके (मैं) किस-किसके व्यंग सहन करूँ। श्यामसुन्दर! तुम्हें छोड़कर मैं और किसी को नहीं जानती, एवं संकोच के कारण तुमसे कुछ कहती नहीं। कुल की मर्यादा लेकर मैं क्या करूँगी, (उसे रखते हुए) फिर तुमको कहाँ पाऊँगी। उस माता को धिक्कार, उस पिता को धिक्कार, जो तुमसे विमुख हैं, (उनको) जहाँ अच्छा लगे, उधर प्रवृत्त हों! कोई कुछ करे और कोई कुछ कहे, मैं (उससे) न हर्षित होती हूँ न दुःखित। श्यामसुन्दर! तुम्हें देखे बिना मेरे शरीर, मन एवं प्राण जलने लगते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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