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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग आसावरी[258] सूरदासजी की शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी!) मुझसे भी (मेरे) वे (नेत्र) ढीठ कहे जाते हैं (मेरे साथ भी ढिठाई करते हैं); जब तक मैं मौन धारण किये (चुप) हूँ तभी तक वे अपनी इच्छा पूरी कर रहे हैं। मैंने उनको आगे कर रखा है, फिर वे मुझे क्यों भूलते हैं? अपने काम – (स्वार्थ-) के लिये तो (वे) मुझसे मिलकर चले और अब मेरा भाग देते उन्हें रोना आता है। सखी! मैंने उनका बहुत संकोच किया; पर अब देखो! वे ही (स्वयं अपनी) मर्यादा कम कर रहे हैं। जो जैसा हो; उसके साथ वैसा (ही) व्यवहार करना चाहिये। ये (नेत्र) श्यामसुन्दर के आगे गढ़-गढ़कर बातें बनाते हैं। वे उन – (श्यामसुन्दर-) से ही मिले रहें, मैं उनको नहीं चाहती; (किंतु) मेरा हिसाब क्यों नहीं समझा देते? (बात यह है कि) श्यामसुन्दर के संग ने इनका गर्व बढ़ा दिया है और उन्हीं के बल पर ये (हमसे) शत्रुता बढ़ाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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