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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी[315] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र घर की ही चोरी करते हैं। (पहले ये) श्यामसुन्दर का अंग-सौन्दर्य चुराने गये थे, पर वहाँ (उलटे) इनके सिर जादू पड़ गया। श्यामसुन्दर ने इनको अपने वश में कर लिया, फिर मेरी ओर भेजा; (अतः) सुध-बुध आदि जो कुछ सम्पत्ति मेरे पास थी, उसे (इनके द्वारा) चोरवा मँगाया। ये बिना शंका-संदेह के दौड़े आये और वह सब सम्पत्ति साथ लेकर चले गये। सखी! श्यामसुन्दर हैं ही ऐसे, उन्हीं ने उलटी चाल चलायी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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