विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग नट [40] सूरदासजी के शब्दों में दूसरी गोपी कहती है— ‘अरी भोली नासमझ गोपी! सुन। श्यामसुन्दर से (तूने) प्रेम किया यह तो ठीक; किंतु उसे प्रकट क्यों कर दिया। अरे, कृष्ण रूपी धन को क्या प्रकट करना चाहिये? (प्रकट कर देने पर अब क्या) उसे बचाकर रखा जा सकता है? अरी नारी! कहना सुन, अब भी समझकर क्यों नहीं देखती? सखी! तूने यह ओछी (छोटी) बुद्धि की बात की, जो लज्जा को त्याग दिया। अरी! सुन, तुझे मूर्ख कहते मुझे लज्जा आती है। (तेरे) मुख से उत्तर नहीं निकलता? मैं पुकारकर (तुझसे) कहती हूँ कि स्वामी- (श्रीकृष्ण— ) को पाकर इस ज्ञान (उपदेश— ) का (कि उनका प्रेम गुप्त रखना चाहिये) ह्रदय में विचार कर।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |