|
|
|
1.
|
अँखियन ऐसी धरनि धरी
|
341
|
2.
|
अँखियन की सुधि भूलि गईं
|
347
|
3.
|
अँखियन तब तैं बैर धर्यो
|
343
|
4.
|
अँखियन तैं री स्याम कौं
|
346
|
5.
|
अँखियन यहई टेव परी
|
338
|
6.
|
अँखियन स्याम अपनी करीं
|
342
|
7.
|
अँखियाँ जानि अजान भईं
|
73
|
8.
|
अँखियाँ निरखि स्याम मुख भूली
|
339
|
9.
|
अँखियाँ हरि के हाथ बिकानीं
|
340
|
10.
|
अति रस लंपट नैन भए
|
313
|
11.
|
अब कैसें दूजे हाथ बिकाऊँ
|
71
|
12.
|
अब तौ प्रगट भई जग जानी
|
47
|
13.
|
अब मैंहूँ इहिं टेक परी
|
332
|
14.
|
अब समझी यह निठुर बिधाता
|
88
|
15.
|
आँखिन मैं बसै, जिय मैं बसै
|
140
|
16.
|
आज के द्दौस कौं सखी
|
96
|
17.
|
आपस्वारथी की गति नाहीं
|
165
|
18.
|
आवतहीं याके ये ढंग
|
348
|
19.
|
इन्ह नैनन की कथा सुनावैं
|
195
|
20.
|
अँखियन की सुधि भूलि गईं
|
298
|
21.
|
इन्ह नैनन सौं मानी हारि
|
343
|
22.
|
इन्ह नैनन सौं री सखी
|
324
|
23.
|
इन्ह बातन कहुँ होति बड़ाई
|
180
|
24.
|
इन नैनन मोहिं बहुत सतायौ
|
184
|
25.
|
इनहू मैं घटताई कीन्ही
|
97
|
26.
|
एक गाउँ को बास धीरज
|
55
|
27.
|
ऐसे आपस्वारथी नैन
|
205
|
28.
|
ऐसे निठुर नाहिं जग कोई
|
283
|
29.
|
ऐसे बस्य न काहुहि कोऊ
|
220
|
30.
|
कपट कन दरस खग नैन मेरे
|
211
|
31.
|
कपटी नैनन तैं कोउ नाहीं
|
273
|
32.
|
कब की मह्यौ लिऐं सिर
|
64
|
33.
|
कब री मिले स्याम नहिं जानौं
|
98
|
34.
|
कबहुँ कबहुँ आवत ये, मोहि
|
291
|
35.
|
करन दै लोगन कौं उपहास
|
54
|
36.
|
कहति नंद घर मोहि बतावौ
|
38
|
37.
|
कहा करैगौ कोऊ मेरौ
|
48
|
38.
|
कहा करौं बिधि हाथ नहीं
|
87
|
39.
|
कहा करौं, मन हाथ नहीं
|
45
|
40.
|
कहा कहति तू मोहि री माई
|
41
|
41.
|
कहा भए जो ऐसे लोचन
|
179
|
42.
|
कहा भयौ जौ आपस्वारथी
|
274
|
43.
|
कहाँ लगि अलकैं दैहौं ओट
|
104
|
44.
|
का काहू कौं दोष लगावैं
|
78
|
45.
|
कान्ह माखन खाहु, हम सु देखैं
|
9
|
46.
|
कियौ यह भेद मन, और
|
178
|
47.
|
कुल की कानि कहाँ लगि करिहौं
|
149
|
48.
|
कुल की लाज अकाज कियौ
|
147
|
49.
|
को इन्ह की परतीति बखाने
|
280
|
50.
|
को जानै हरि कहा कियौ री
|
102
|
51.
|
कोउ माई लैहै री गोपालै
|
32
|
52.
|
क्यौं सुरझाऊँ नंद लाल सौं
|
118
|
53.
|
'गन गंधर्ब देखि सिहात
|
15
|
54.
|
गोपिका अति आनंद भरी
|
11
|
55.
|
गोपिनि हेत माखन खात
|
13
|
56.
|
गोपी कहतिं धन्य हम नारी
|
14
|
57.
|
गोपी स्याम रंग राँची
|
131
|
58.
|
(माई री) गोबिंद सौं प्रीति
|
50
|
59.
|
गोरस कौ निज नाम भुलायौ
|
30
|
60.
|
गोरस लेहु री कोउ आइ
|
19
|
61.
|
ग्वालिन फिरत बिहाल सौं
|
31
|
62.
|
ग्वालिनी प्रगट्यों पूरन नेहु
|
33
|
63.
|
चक्रित भईं घोष कुमारि
|
21
|
64.
|
चली प्रातहीं गोपिका मटकिनि
|
28
|
65.
|
छोटी मटकी मधुर चाल चलि
|
34
|
66.
|
जद्यपि नैन भरत ढरि
|
203
|
67.
|
जब तैं नैन गए मोहि
|
255
|
68.
|
जब तैं प्रीति स्याम सौं कीन्ही
|
101
|
69.
|
जब तैं हरि अधिकार दियौ
|
202
|
70.
|
जाकी जैसी टेव परी री
|
299
|
71.
|
जाकी जैसी बानि परी री
|
334
|
72.
|
जातैं पर्यो स्याम घन नाउँ
|
270
|
73.
|
जा दिन तैं हरि दृष्टि परे री
|
100
|
74.
|
जान देहु गोपाल बुलाई की
|
1
|
75.
|
जान दै स्यामसुँदर लौं आज
|
8
|
76.
|
जुबति गई, घर नैक न भावत
|
24
|
77.
|
जे लोभी ते देहिं कहा री
|
206
|
78.
|
जौ देखौं तौ प्रीति करौं री
|
93
|
79.
|
जो बिधना अपबस करि पाऊँ
|
86
|
80.
|
टरति न टारें छबि मन जु चुभी
|
105
|
81.
|
ढीठ भए ये डोलत हैं
|
192
|
82.
|
तब तैं नैन रहे इकटकहीं
|
234
|
83.
|
तब नागरि मन हरष भई
|
68
|
84.
|
तबहीं तैं हरि हाथ बिकानी
|
99
|
85.
|
तिन कौं स्याम पत्याने सुनियत
|
229
|
86.
|
तुम्ह कैसें दरसन पावति री
|
154
|
87.
|
तुम्ह देखे, मैं नाहिं पत्यानी
|
72
|
88.
|
तैं मेरें हित कहति सही
|
59
|
89.
|
थकित भए मोहन मुख नैन
|
277
|
90.
|
दधि बेचति ब्रज गलिनि फिरै
|
29
|
91.
|
दधि मटकी सिर लिऐं ग्वालिनी
|
35
|
92.
|
देखियत दोउ अहँकार परे
|
157
|
93.
|
देखत हरि के रूपै नैना हारें हार
|
336
|
94.
|
देखन दै पिय, मदनगुपालै
|
2
|
95.
|
देखन दै बृंदाबन चंदै
|
3
|
96.
|
देखेहुँ अनदेखे से लागत
|
156
|
97.
|
देह धरे कौ कारन सोई
|
70
|
98.
|
द्वै लोचन तुम्हरें, द्वै मेरें
|
75
|
99.
|
द्वै लोचन साबित नहिं तेऊ
|
89
|
100.
|
धन्य धन्य अँखियाँ बड़भागिन
|
344
|
101.
|
नख सिख अंग अंग छबि देखत नैना
|
158
|
102.
|
नट के बटा भए ये नैन
|
329
|
103.
|
नर नारी सब बूझत धाइ
|
37
|
104.
|
नागरी स्याम सौं कहति
|
153
|
105.
|
नाचत नैन, नचावत लोभ
|
323
|
106.
|
ना जानौं तबही तैं मोकौं स्याम
|
110
|
107.
|
नाहिं ढीठ, नैनन तैं और
|
311
|
108.
|
निस दिन इन्ह नैनन कौं आली
|
135
|
109.
|
नैक नाहिं घर सौं मन लागत
|
26
|
110.
|
नैन आपने घर के री
|
182
|
111.
|
नैन करत घरही की चोरी
|
315
|
112.
|
नैन करैं सुख, हम दुख पावैं
|
194
|
113.
|
नैन खग स्याम नीकें पढाए
|
112
|
114.
|
नैन गए न फिरे री माई
|
254
|
115.
|
नैन गए री अति अकुलात
|
267
|
116.
|
नैन गए सु फिरे नहिं
|
332
|
117.
|
नैनाहिं ढीठ अतिहीं भए
|
301
|
118.
|
नैन तौ कहे मैं नाहिं मेरे
|
187
|
119.
|
नैन न मेरे हाथ रहे
|
168
|
120.
|
नैनन ऐसी बानि परी
|
288
|
121.
|
नैनन कठिन बानि पकरी ।
|
281
|
122.
|
नैनन कोउ समुझावै री
|
246
|
123.
|
नैनन कौं अब नाहिं पत्याउँ
|
197
|
124.
|
नैनन कौ मत सुनौ सयानी
|
303
|
125.
|
नैनन कौं री यहै सुहाइ
|
335
|
126.
|
नैनन तैं यह भई बड़ाई
|
200
|
127.
|
नैनन दसा करी यह मेरी
|
279
|
128.
|
नैनन देखिबे की ठौरि
|
233
|
129.
|
नैन निरखि, अजहूँ न फिरे री
|
231
|
130.
|
नैनन नींद गई री निसि दिन
|
137
|
131.
|
नैनन प्रान चोरि लै दीने
|
316
|
132.
|
नैनन बान परी नहिं नीकी
|
282
|
133.
|
नैनन भलौ मतौ ठहरायौ
|
304
|
134.
|
नैनन यह कुटेव पकरी
|
263
|
135.
|
नैनन साधैं नाहिं सिराइँ
|
307
|
136.
|
नैनन साधे ही जु रही
|
306
|
137.
|
नैनन सिखवत हारि परी
|
324
|
138.
|
नैनन सौं झगरौ करिहौं री
|
257
|
139.
|
नैनन हरि कौं निठुर कराए
|
272
|
140.
|
नैनन हौं समुझाइ रही
|
289
|
141.
|
नैन परे रस स्याम सुधा मैं
|
173
|
142.
|
नैन परे हरि पाछें री
|
174
|
143.
|
नैन भए अधिकारी जाइ
|
201
|
144.
|
नैन भए बस मोहन तैं
|
219
|
145.
|
नैन भए बोहित के काग
|
250
|
146.
|
नैन भए हरिही के
|
190
|
147.
|
नैन मिले हरि कौं ढरि भारी
|
224
|
148.
|
नैननि तैं हरि आपु स्वारथी
|
269
|
149.
|
नैन स्याम सुख लूटत हैं।
|
265
|
150.
|
नैन परे बहु लूटि मैं, नोखी निधि
|
181
|
151.
|
नैना अटके रूप मैं, पल रहत
|
261
|
152.
|
नैना अतिहीं लोभ भरे
|
204
|
153.
|
नैना, इहिं ढंग परे, कहा
|
241
|
154.
|
नैना उनही देखें जीवत
|
320
|
155.
|
नैना ओछे चोर अरी री
|
238
|
156.
|
नैना कहें न मानत मेरे
|
290
|
157.
|
नैना कह्यौ न मानैं मेरौ
|
183
|
158.
|
नैना कह्यौ मानत नाहिं
|
286
|
159.
|
नैना खोज परे हैं ऐसे
|
240
|
160.
|
नैना घूँघट मैं न समात
|
68
|
161.
|
नैना झगरत आइ कैं मोसौं री
|
302
|
162.
|
नैना नहिं आवैं तुव पास
|
172
|
163.
|
नैना नाहिन कछू बिचारत
|
321
|
164.
|
नैना निपट बिकट छबि अटके
|
260
|
165.
|
नैना नीके उनहिं रए
|
171
|
166.
|
नैना नैनन माँझ समाने
|
235
|
167.
|
नैना बहुत भाँति हटके
|
327
|
168.
|
नैना बीधे दोऊ मेरे
|
217
|
169.
|
नैना भए पराए चेरे
|
333
|
170.
|
नैना भए प्रगटहीं चेरे
|
214
|
171.
|
नैना भए बजाइ गुलाम
|
177
|
172.
|
नैना भरे घर के चोर
|
207
|
173.
|
नैना मानत नाहिन बरज्यौ
|
285
|
174.
|
नैना मानऽपमान सह्यौ
|
252
|
175.
|
नैना मारेहू पै मारत
|
239
|
176.
|
नैना मेरे अटके री, माई वा मोहन
|
222
|
177.
|
नैना मेरे मिलि चले, इंद्री औ मन
|
256
|
178.
|
नैना मोकौं नाहिं पत्याहिं
|
294
|
179.
|
नैना रहैं न मेरे हटकें
|
259
|
180.
|
नैना लुब्धे रूप कौं अपने
|
191
|
181.
|
नैना लौन हरामी ये
|
223
|
182.
|
नैना लोभै लोभ भरे
|
237
|
183.
|
नैना हरि अंग रूप लुब्धे री माई
|
175
|
184.
|
नैना हाथ न मेरे आली
|
188
|
185.
|
नैना ऐसे हैं बिसवासी
|
213
|
186.
|
नैना हैं री ये बटपारी
|
228
|
187.
|
नंद के द्वार नँद गेह बूझे
|
39
|
188.
|
नंद कें लाल हर्यौ मन मोर
|
106
|
189.
|
नंद नँदन बिन कल न परै
|
141
|
190.
|
नंदलाल सौं मेरौ मन मान्यौ,
|
53
|
191.
|
परी मेरे नैनन ऐसी बानि
|
287
|
192.
|
पलक ओट नहिं होत कन्हाई
|
27
|
193.
|
पावै कौन लिखे बिन भाल
|
76
|
194.
|
पिय! जिन रोकै, जान दै।
|
5
|
195.
|
प्राननाथ हो, मेरी सुरति
|
150
|
196.
|
प्रेम सहित हरि तेरें आए
|
112
|
197.
|
बहुत भाँति नैना समझाए
|
328
|
198.
|
बार बार मोहि कहा सुनावति
|
42
|
199.
|
बिकानी हरि मुख की मुसकानि
|
46
|
200.
|
बिधनाँ चूक परी मैं जानी
|
74
|
201.
|
बिधनाँ यह संगति मोहि दीन्ही
|
143
|
202.
|
बीच कियौ कुल लज्जा आइ
|
146
|
203.
|
बेचति ही दधि ब्रज की खोरी
|
36
|
204.
|
बैठि गईं मटकी सब धरि कें
|
20
|
205.
|
ब्रज की खोरिहिं ठाढ़ौ साँवरौ
|
139
|
206.
|
ब्रज की खोरिहिं ठाढ़ौ साँवरौ
|
39
|
207.
|
ब्रज बसि काके बोल सहौं ।
|
66
|
208.
|
रजहिं बसें आपुहि बिसरायौ
|
67
|
209.
|
भई गई ये नैन न जानत
|
248
|
210.
|
भई मन माधौ की अवसेर
|
65
|
211.
|
भली करी उन्ह, स्याम
|
208
|
212.
|
मन के भेद नैन गए माई
|
167
|
213.
|
मन तैं ये अति ढीठ भए
|
169
|
214.
|
मन तौ गयौ, नैन हे
|
161
|
215.
|
मन तौ हरिही हाथ
|
160
|
216.
|
(मेरौ) मन न रहै कान्ह बिना
|
113
|
217.
|
मन न रहै सखि! स्याम
|
136
|
218.
|
मन बिगर्यो येउ नैन बिगारे
|
164
|
219.
|
मन मधुकर पद कमल
|
82
|
220.
|
मन मेरौ हरि संग गयौ री
|
114
|
221.
|
मन लुबध्यौ हरि रूप निहारि
|
84
|
222.
|
मन हरि लीन्हौ कुँवर
|
111
|
223.
|
मन हरि लीन्हौं कुँवर कन्हाई
|
124
|
224.
|
मन हरि सौं, तन घरहिं
|
23
|
225.
|
मनहि बिना का करौं सखी
|
116
|
226.
|
माई! कृष्न नाम जब तैं
|
122
|
227.
|
माखन की चोरी तैं सीखे
|
117
|
228.
|
माखन दधि हरि खात
|
10
|
229.
|
मेरे इन्ह नैनन इते करे
|
278
|
230.
|
मेरे कहे मैं कोउ नाहिं
|
44
|
231.
|
मेरें जिय यहई सोच पर्यो
|
163
|
232.
|
मेरे दधि कौ हरि! स्वाद
|
12
|
233.
|
मेरे नैन कुरंग भए
|
218
|
234.
|
मेरे नैन चकोर भुलाने
|
243
|
235.
|
मेरे नैननही सब खोरि
|
295
|
236.
|
मेरे नैननही सब दोष
|
292
|
237.
|
मेरे नैना अटकि परे
|
305
|
238.
|
मेरे नैना दोष भरे
|
293
|
239.
|
मेरे नैना ये अति ढीठ
|
310
|
240.
|
अनुराग पदावली पृ. 59
|
59
|
241.
|
अनुराग पदावली पृ. 277
|
277
|
242.
|
मेरे माई! लोभी नैन भए
|
236
|
243.
|
मेरौ मन गोपाल
|
107
|
244.
|
मेरौ मन तब तैं न फिर्यो
|
108
|
245.
|
मेरौ मन हरि चितवनि
|
57
|
246.
|
मेरौ माई! माधौ सौं मन मान्यौ
|
52
|
247.
|
मैं अपनौ मन हरत
|
119
|
248.
|
मैं अपनौ मन हरि
|
51
|
249.
|
मैं मन बहुत भाँति समझायौ
|
115
|
250.
|
मोतैं नैन गए री ऐसें
|
330
|
251.
|
मोहन बदन बिलोकि थकित
|
276
|
252.
|
मोहन मुरलि बजाइ रिझाई
|
138
|
253.
|
मोहन (माई री) हठ करि
|
159
|
254.
|
मोहू तैं वे ढीठ कहावत
|
258
|
255.
|
यह कहि मौन साध्वौ
|
61
|
256.
|
यह तौ नैननहीं जु
|
242
|
257.
|
यह नैनन की टेव परी
|
253
|
258.
|
यह सब नैननहीं कौं लागै
|
296
|
259.
|
यह सब मैं ही पोच करी
|
109
|
260.
|
या घर मैं कोउ है कै नाहीं
|
17
|
261.
|
ये अँखियाँ बड़भागिनी, जिन्हि
|
345
|
262.
|
ये नैना अतिहीं चपल चोर
|
314
|
263.
|
ये नैना अपस्वारथ के
|
221
|
264.
|
ये नैना मेरे ढीठ भए री
|
300
|
265.
|
ये नैना यौं आहिं हमारे
|
196
|
266.
|
ये लोचन लालची भए री
|
317
|
267.
|
रति बाढ़ी गोपाल सौं।
|
4
|
268.
|
राधा! तैं हरि के रँग राँची
|
23
|
269.
|
राधा नँद नंदन अनुरागी
|
130
|
270.
|
राधा मोहन सहज सनेही
|
129
|
271.
|
राधा स्याम रंग रँगी
|
145
|
272.
|
राधा हरि अनुराग भरी
|
125
|
273.
|
राधेहि मिलेहुँ प्रतीति न आवति
|
155
|
274.
|
रीती मटकी सीस धरैं
|
18
|
275.
|
रीती मटकी सीस लै चलिं
|
16
|
276.
|
रोम रोम ह्वै नैन गए री
|
230
|
277.
|
लहनी करम के पाछैं
|
79
|
278.
|
लोक सकुच कुल कानि तजी
|
25
|
279.
|
लोचन आइ कहा ह्याँ पावैं
|
199
|
280.
|
लोचन गए निदरि कैं मोकौं
|
170
|
281.
|
लोचन चोर बाँधे स्याम
|
209
|
282.
|
लोचज टेक परे सिसु जैसें
|
297
|
283.
|
लोचन भए अतिहीं ढीठ
|
225
|
284.
|
लोचन भए परेखू माई
|
210
|
285.
|
लोचन भए पराए जाइ
|
331
|
286.
|
लोचन भए स्याम के चेरे
|
185
|
287.
|
लोचन भए स्यामहि बस, कहा
|
176
|
288.
|
लोचन भूलि रहे तहँ जाई
|
262
|
289.
|
लोचन भृंग कोस रस पागे
|
216
|
290.
|
लोचन मानत नाहिन बोल
|
319
|
291.
|
लोचन मेरे भृंग भए री
|
215
|
292.
|
लोचन लालच तैं न टरे
|
245
|
293.
|
लोचन लालची भारी
|
312
|
294.
|
लोचन लोभ ही मैं रहत
|
318
|
295.
|
लोचन सपने के भ्रम भूले
|
309
|
296.
|
लोभी नैन हैं मेरे
|
268
|
297.
|
सखि, मोहि हरि दरस रस प्याइ
|
49
|
298.
|
सखी वह गई हरि पैं धाइ
|
62
|
299.
|
सखीं सखी सौं धन्य कहैं
|
128
|
300.
|
सजनी! नैना गए भगाइ
|
275
|
301.
|
सजनी! मनैं अकाज कियौ
|
162
|
302.
|
सजनी! मोतैं नैन गए
|
266
|
303.
|
सतर होति काहे कौं माई
|
198
|
304.
|
सबै हिरानी हरि मुख हेरें
|
43
|
305.
|
सिर मटकी, मुख मौन गही
|
63
|
306.
|
सुंदर स्याम कमल दल लोचन
|
148
|
307.
|
सुंदर स्याम पिया की जोरी
|
126
|
308.
|
सुन री सखी, बात एक मेरी
|
60
|
309.
|
सुनि री सखी, बचन इक मोसौं
|
77
|
310.
|
सुनि री सखी! दसा यह मेरी
|
95
|
311.
|
सुनौ सखी, मैं बूझति तुम कौं
|
81
|
312.
|
सुनौ सखी! हरि करत न नीकी
|
121
|
313.
|
सुनहु स्याम! मेरी इक बात
|
152
|
314.
|
सुनौ स्याम! मेरी बिनती
|
69
|
315.
|
सुनि सजनी! तू भई अयानी
|
193
|
316.
|
सुनि सजनी! मेरी इक बात
|
85
|
317.
|
सुनि सजनी! मोसौं इक बात
|
264
|
318.
|
सुनि सजनी! ये ऐसे लागत
|
127
|
319.
|
सुनि री ग्वारि मुग्ध गँवारि
|
40
|
320.
|
सुभट भए डोलत ये नैन
|
226
|
321.
|
सेवा इन की बृथा करी
|
227
|
322.
|
'स्याम अंग निरखि नैन कबहूँ न
|
308
|
323.
|
स्याम करत हैं मन की चोरी
|
120
|
324.
|
स्याम घन ऐसे हैं री माई
|
271
|
325.
|
स्याम छबि लोचन भटकि परे
|
249
|
326.
|
स्याम जल सुजल ब्रज नारि
|
132
|
327.
|
स्याम बिना यह कौन करै
|
22
|
328.
|
स्याम रँग रँगे रँगीले नैन
|
189
|
329.
|
स्याम रूप देखन की
|
80
|
330.
|
स्याम रूप मैं री मन अर्यो
|
134
|
331.
|
स्याम रंग नैना राँचे री
|
322
|
332.
|
'स्याम रंग राँची ब्रज
|
133
|
333.
|
स्याम सखि! नीकैं देखे
|
83
|
334.
|
स्याम सौं काहे की पहचानि
|
91
|
335.
|
स्यामै मैं कैसैं पहचानौं
|
90
|
336.
|
हम अहीर ब्रजबासी लोग
|
142
|
337.
|
हम तैं गए, उनहु
|
166
|
338.
|
हरि छबि अंग नट के ख्याल
|
247
|
339.
|
हरि छबि देखि नैन ललचाने
|
186
|
340.
|
हरि दरसन की साध मुई
|
94
|
341.
|
हरि देखन की साध भरी
|
6
|
342.
|
हरि देखे बिनु कल न परै
|
56
|
343.
|
हरि मुख बिधु, मेरी अँखियाँ
|
244
|
344.
|
हरि मेरे आँगन ह्वै जु गए
|
103
|
345.
|
हरिहिं मिलत काहे कौं घेरी
|
7
|
346.
|
हारि जीति दोऊ सम इन कें
|
337
|
347.
|
हारि जीति नैना नहिं जानत
|
251
|
348.
|
हों या माया ही लागी, तुम कित
|
151
|
349.
|
हौं सँग साँवरे के जैहौं
|
58
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|
अंतिम पृष्ठ
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348
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