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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री[339] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मेरी) आँखें श्यामसुन्दर का मुख देखकर (अपने-आप को) भूल गयी हैं; (उनकी) कोमल हँसी की ज्योत्स्ना (ये) ऐसी चकित हो गयी हैं, जैसे चन्द्रमा को देखकर कुमुदिनी उत्फुल्ल होती है। कुल की लज्जा, कुल का धर्म, कुल का नाम आदि एक भी मानती नहीं; ऐसी बनकर इन्होंने श्यामसुन्दर से प्रेम किया है कि (किसी का) रोकना भी तनिक सुनती नहीं। ये अपने शरीर की अवस्था भूलकर श्यामसुन्दर की अंग-माधुरी पर लुब्ध हो गयी हैं, (इनके) मस्तक पर श्यामसुन्दर ने कुछ (मन्त्र) पढ़कर डाल दिया है और (इस प्रकार) इन्हें वश में कर लिया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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