प्रथम स्कन्ध: अष्टम अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: प्रथम स्कन्धः अष्टम अध्यायः श्लोक 29-39 का हिन्दी अनुवाद
दूसरे लोग यों कहते हैं कि वसुदेव और देवकी ने पूर्वजन्म में (सुतपा और पृश्नि के रूप में) आपसे यही वरदान प्राप्त किया था, इसलिये आप अजन्मा होते हुए भी जगत् के कल्याण और दैत्यों के नाश के लिये उनके पुत्र बने हैं। कुछ और लोग यों कहते हैं कि यह पृथ्वी दैत्यों के अत्यन्त भार समुद्र में डूबते हुए जहाज की तरह डगमगा रही थी- पीड़ित हो रही थी, तब ब्रह्मा की प्रार्थना से उसका भार उतारने के लिये ही आप प्रकट हुए। कोई महापुरुष यों कहते हैं कि जो लोग इस संसार में अज्ञान, कामना और कर्मों के बन्धन में जकड़े हुए पीड़ित हो रहे हैं, उन लोगों के लिये श्रवण और स्मरण करने योग्य लीला करने के विचार से ही आपने अवतार ग्रहण किया है। भक्तजन बार-बार आपके चरित्र का श्रवण, गान, कीर्तन एवं स्मरण करके आनन्दित होते रहते हैं; वे ही अविलम्ब आपके उस चरणकमल का दर्शन कर पाते हैं; जो जन्म-मृत्यु के प्रवाह को सदा के लिये रोक देता है। भक्तवांछाकल्पतरु प्रभो! क्या अब आप अपने आश्रित और सम्बन्धी हम लोगों को छोड़कर जाना चाहते हैं। आप जानते हैं कि आपके चरणकमलों के अतिरिक्त हमें और किसी का सहारा नहीं है। पृथ्वी के राजाओं के तो हम यों ही विरोधी हो गये हैं। जैसे जीव के बिना इन्द्रियाँ शक्तिहीन हो जाती हैं, वैसे ही आपके दर्शन बिना यदुवंशियों के और हमारे पुत्र पाण्डवों के नाम तथा रूप का अस्तित्व ही क्या रह जाता है। गदाधर! आपके विलक्षण चरणचिह्न से चिह्नित यह कुरुजांगल-देश कि भूमि आज जैसी शोभायमान हो रही है, वैसी आपके चले जाने के बाद न रहेगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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