श्रीमद्भागवत महापुराण सप्तम स्कन्ध अध्याय 8 श्लोक 24-32

सप्तम स्कन्ध: अथाष्टमोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: सप्तम स्कन्ध: षष्ठ अध्यायः श्लोक 24-32 का हिन्दी अनुवाद


इस प्रकार कहता और सिंहनाद करता हुआ दैत्यराज हिरण्यकशिपु हाथ में गदा लेकर नृसिंह भगवान् पर टूट पड़ा। परन्तु जैसे पतिंगा आग में गिरकर अदृश्य हो जाता है, वैसे ही वह दैत्य भगवान् के तेज के भीतर जाकर लापता हो गया। समस्त शक्ति और तेज के आश्रय भगवान् के सम्बन्ध में ऐसी घटना कोई आश्चर्यजनक नहीं है; क्योंकि सृष्टि के प्रारम्भ में उन्होंने अपने तेज से प्रलय के निमित्तभूत तमोगुणरूपी घोर अन्धकार को भी पी लिया था।

तदनन्तर वह दैत्य बड़े क्रोध से लपका और अपनी गदा को बड़े जोर से घुमाकर उसने नृसिंह भगवान् पर प्रहार किया। प्रहार करते समय ही-जैसे गरुड़ साँपों को पकड़ लेते हैं, वैसे ही भगवान् ने गदा सहित उस दैत्य को पकड़ लिया। वे जब उसके साथ खिलवाड़ करने लगे, तब वह दैत्य उनके हाथ से वैसे ही निकल गया, जैसे क्रीड़ा करते हुए गरुड़ के चंगुल से साँप छूट जाये।

युधिष्ठिर! उस समय सब-के-सब लोकपाल बादलों में छिपकर इस युद्ध को देख रहे थे। उनका स्वर्ग तो हिरण्यकशिपु ने पहले ही छीन लिया था। जब उन्होंने देखा कि वह भगवान् के हाथ से छूट गया, तब वे और भी डर गये। हिरण्यकशिपु ने भी यही समझा कि नृसिंह ने मेरे बलवीर्य से डरकर ही मुझे अपने हाथ से छोड़ दिया है। इस विचार से उसकी थकान जाती रही और वह युद्ध के लिये ढाल-तलवार लेकर फिर उनकी ओर दौड़ पड़ा। उस समय वह बाज की तरह बड़े वेग से ऊपर-नीचे उछल-कूदकर इस प्रकार ढाल-तलवार के पैंतरे बदलने लगा कि जिससे उन पर आक्रमण करने का अवसर ही न मिले। तब भगवान् ने बड़े ऊँचे स्वर में प्रचण्ड और भयंकर अट्टहास किया, जिससे हिरण्यकशिपु की आँखें बंद हो गयीं। फिर बड़े वेग से झपटकर भगवान् ने उसे वैसे ही पकड़ लिया, जैसे साँप चूहे को पकड़ लेता है।

जिस हिरण्यकशिपु के चमड़े पर वज्र की चोट से भी खरोंच नहीं आयी थी, वही अब उनके पंजे से निकलने के लिये जोर से छटपटा रहा था। भगवान् ने सभा के दरवाजे पर ले जाकर उसे अपनी जाँघों पर गिरा लिया और खेल-खेल में अपने नखों से उसे उसी प्रकार फाड़ डाला, जैसे गरुड़ महाविषधर साँप को चीर डालते हैं। उस समय उनकी क्रोध से भरी विकराल आँखों की ओर देखा नहीं जाता था। वे अपनी लपलपाती हुई जीभ से फैले हुए मुँह के दोनों कोने चाट रहे थे। खून के छींटों से उनका मुँह और गरदन के बाल लाल हो रहे थे। हाथी को मारकर गले में आँतों की माला पहले हुए मृगराज के समान उनकी शोभा हो रही थी। उन्होंने अपने तीखे नखों से हिरण्यकशिपु का कलेजा फाड़कर उसे जमीन पर पटक दिया। उस समय हजारों दैत्य-दानव हाथों में शस्त्र लेकर भगवान् पर प्रहार करने के लिये आये। पर भगवान् ने अपनी भुजारूपी सेना से, लातों से और नखरूपी शस्त्रों से चारों ओर खदेड़-खदेड़ कर उन्हें मार डाला।

युधिष्ठिर! उस समय भगवान् नृसिंह के गरदन के बालों की फटकार से बादल तितर-बितर होने लगे। उनके नेत्रों की ज्वाला से सूर्य आदि ग्रहों का तेज फीका पड़ गया। उनके श्वास के धक्के से समुद्र क्षुब्ध हो गये। उनके सिंहनाद से भयभीत होकर दिग्गज चिग्घाड़ने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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