षष्ठ स्कन्ध: षष्ठ अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: षष्ठ स्कन्ध: षष्ठ अध्यायः श्लोक 20-36 का हिन्दी अनुवाद
परीक्षित! कृत्तिका आदि सत्ताईस नक्षत्राभिमानिनी देवियाँ चन्द्रमा की पत्नियाँ हैं। रोहिणी से विशेष प्रेम करने के कारण चन्द्रमा को दक्ष ने शाप दे दिया, जिससे उन्हें क्षयरोग हो गया था। उन्हें कोई सन्तान नहीं हुई। उन्होंने दक्ष को फिर से प्रसन्न करके कृष्ण पक्ष की क्षीण कलाओं के शुक्ल पक्ष में पूर्ण होने के वर तो प्राप्त कर लिया, (परन्तु नक्षत्राभिमानी देवियों से उन्हें कोई सन्तान न हुई) अब तुम कश्यप पत्नियों के मंगलमय नाम सुनो। वे लोकमाताएँ हैं। उन्हीं से यह सारी सृष्टि उत्पन्न हुई है। उनके नाम हैं- अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सरमा और तिमी। इसमें तिमि के पुत्र हैं- जलचर जन्तु और सरमा के बाघ आदि हिंसक जीव। सुरभि के पुत्र हैं- भैंस, गाय तथा दूसरे दो खुर वाले पशु। ताम्रा की सन्तान हैं- बाज, गीध आदि शिकारी पक्षी। मुनि से अप्सराएँ उत्पन्न हुईं। क्रोधावेश के पुत्र हुए- साँप, बिच्छू आदि विषैले जन्तु। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी में उत्पन्न होने वाली वनस्पतियाँ और सुरसा से यातुधान (राक्षस)। अरिष्टा से गन्धर्व और काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए। दनु के इकसठ पुत्र हुए। उनमें प्रधान-प्रधान के नाम सुनो। द्विमूर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अयोमुख, शंकुशिरा, स्वर्भानु, कपिल, अरुण, पुलोमा, वृषपर्वा, एकचक्र, अनुतापन, धूम्रकेश, विरुपाक्ष, विप्रचित्ति और दुर्जय। स्वर्भानु की कन्या सुप्रभा से नमुचिने और वृषपर्वा की पुत्री शार्मिष्ठा से महाबली नहुषनन्दन ययाति ने विवाह किया। दनु के पुत्र वैश्वानर की चार सुन्दरी कन्याएँ थीं। इनके नाम थे- उपदानवी, हयशिरा, पुलोमा और कालका। इनमें से उपदानवी के साथ हिरण्याक्ष और हयशिरा के साथ क्रतु का विवाह हुआ। ब्रह्मा जी की आज्ञा से प्रजापति भगवान् कश्यप ने ही वैश्वानर की शेष दो पुत्रियों- पुलोमा और कालका के साथ विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानव हुए। इन्हीं का दूसरा नाम निवातकवच था। ये यज्ञकर्म में विघ्न डालते थे, इसलिये परीक्षित! तुम्हारे दादा अर्जुन ने अकेले ही उन्हें इन्द्र को प्रसन्न करने के लिये मार डाला। यह उन दिनों की बात है, जब अर्जुन स्वर्ग में गये हुए थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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