षष्ठ स्कन्ध: षष्ठ अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: षष्ठ स्कन्ध: षष्ठ अध्यायः श्लोक 37-45 का हिन्दी अनुवाद
परीक्षित! अब क्रमशः अदिति की वंश परम्परा सुनो। इस वंश में सर्वव्यापक देवाधिदेव नारायण ने अपने अंश से वामन रूप में अवतार लिया था। अदिति के पुत्र थे- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम (वामन)। यही बारह आदित्य कहलाये। विवस्वान् की पत्नी महाभाग्यवती संज्ञा के गर्भ से श्राद्धदेव (वैवस्वत) मनु एवं यम-यमी का जोड़ा पैदा हुआ! संज्ञा ने ही घोड़ी का रूप धारण करके भगवान् सूर्य के द्वारा भूलोक में दोनों अश्विनीकुमारों को जन्म दिया। विवस्वान् की दूसरी पत्नी थी छाया। उसके शनैश्चर और सावर्णि मनु नाम के दो पुत्र तथा तपती नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई। तपती ने संवरण को पति रूप में वरण किया। अर्यमा की पत्नी मातृका थी। उसके गर्भ से चर्षणी नामक पुत्र हुए। वे कर्तव्य-अकर्तव्य के ज्ञान से युक्त थे। इसलिये ब्रह्मा जी ने उन्हीं के आधार पर मनुष्य जाति की (ब्राह्मणादि वर्णों की) कल्पना की। पूषा के कोई सन्तान न हुई। प्राचीन काल में जब शिव जी दक्ष पर क्रोधित हुए थे, तब पूषा दाँत दिखाकर हँसने लगे थे; इसलिये वीरभद्र ने इनके दाँत तोड़ दिये थे। तब से पूषा पिसा हुआ अन्न ही खाते हैं। दैत्यों की छोटी बहिन कुमारी रचना त्वष्टा की पत्नी थी। रचना के गर्भ से दो पुत्र हुए- संनिवेश और पराक्रम विश्वरूप। इस प्रकार विश्वरूप यद्यपि शत्रुओं के भानजे थे, फिर भी जब देवगुरु बृहस्पतिजी ने इन्द्र से अपमानित होकर देवताओं का परित्याग कर दिया, तब देवताओं ने विश्वरूप को ही अपना पुरोहित बनाया था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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