दशम स्कन्ध: एकोनषष्टितम अध्याय (पूर्वार्ध)
श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: एकोनषष्टितम अध्याय श्लोक 11-22 का हिन्दी अनुवाद
परीक्षित! भगवान की शक्ति अमोघ और अनन्त है। उन्होंने अपने बाणों से उनके कोटि-कोटि शस्त्रास्त्र तिल-तिल करके काट गिराये। भगवान के शस्त्र प्रहार से सेनापति पीठ और उसके साथी दैत्यों के सिर, जाँघें, भुजा, पैर और कवच कट गये और उन सभी को भगवान ने यमराज के घर पहुँचा दिया। जब पृथ्वी के पुत्र नरकासुर (भौमासुर) ने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण के चक्र और बाणों से हमारी सेना और सेनापतियों का संहार हो गया, तब उसे असह्य क्रोध हुआ। वह समुद्र तट पर पैदा हुए बहुत-से मद वाले हाथियों की सेना लेकर नगर से बाहर निकला। उसने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण अपनी पत्नी के साथ आकाश में गरुड़ पर स्थित हैं, जैसे सूर्य के ऊपर बिजली के साथ वर्षाकालीन श्याममेघ शोभायमान हों। भौमासुर ने स्वयं भगवान के ऊपर शतघ्नी नाम की शक्ति चलायी और उसके सब सैनिकों ने भी एक ही साथ उन पर अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र छोड़े। अब भगवान श्रीकृष्ण भी चित्र-विचित्र पंख वाले तीखे-तीखे बाण चलाने लगे। इससे उसी समय भौमासुर के सैनिकों की भुजाएँ, जाँघें, गर्दन और धड़ कट-कटकर गिरने लगे; हाथी और घोड़े भी मरने लगे। परीक्षित! भौमासुर के सैनिकों ने भगवान पर जो-जो अस्त्र-शस्त्र चलाये थे, उनमें से प्रत्येक को भगवान ने तीन-तीन तीखे बाणों से काट गिराया। उस समय भगवान श्रीकृष्ण गरुड़ जी पर सवार थे और गरुड़ जी अपने पंखों से हाथियों को मार रहे थे। उनकी चोंच, पंख और पंजों की मार से हाथियों को बड़ी पीड़ा हुई और वे सब-के-सब आर्त होकर युद्धभूमि से भागकर नगर में घुस गये। अब वहाँ अकेला भौमासुर ही लड़ता रहा। जब उसने देखा कि गरुड़ जी की मार से पीड़ित होकर मेरी सेना भाग रही है, तब उसने उन पर वह शक्ति चलायी, जिसने वज्र को भी विफल कर दिया था। परन्तु उसकी चोट से पक्षिराज गरुड़ तनिक भी विचलित न हुए, मानो किसी ने मतवाले गजराज पर फूलों की माला से प्रहार किया हो। अब भौमासुर ने देखा कि मेरी एक भी चाल नहीं चलती, सारे उद्योग विफल होते जा रहे हैं, तब उसने श्रीकृष्ण को मार डालने के लिये एक त्रिशूल उठाया। परन्तु उसे अभी वह छोड़ भी न पाया था कि भगवान श्रीकृष्ण ने छुरे के समान तीखी धार वाले चक्र से हाथी पर बैठे हुए भौमासुर का सिर काट डाला। उसका जगमगाता हुआ सिर कुण्डल और सुन्दर किरीट के सहित पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसे देखकर भौमासुर के सगे-सम्बन्धी हाय-हाय पुकार उठे, ऋषि लोग ‘साधु-साधु’ कहने लगे और देवता लोग भगवान पर पुष्पों की वर्षा करते हुए स्तुति करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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