श्रीमद्भागवत महापुराण पंचम स्कन्ध अध्याय 21 श्लोक 12-19

पंचम स्कन्ध: एकविंश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध: एकविंश अध्यायः श्लोक 12-19 का हिन्दी अनुवाद


इस प्रकार भगवान् सूर्य का वेदमय रथ एक मुर्हूत में चौंतीस लाख आठ सौ योजन के हिसाब से चलता हुआ इन चारों पुरियों में घूमता रहता है। इसका संवत्सर नाम का एक चक्र (पहिया) बतलाया जाता है। उसमें मासरूप बारह अरे हैं, ऋतुरूप छः नेमियाँ (हाल) हैं, तीन चौमासेरूप तीन नाभि (आँवन) हैं। इस रथ की धुरी का एक सिरा मेरु पर्वत की चोटी पर है और दूसरा मानसोत्तर पर्वत पर। इसमें लगा हुआ यह पहिया कोल्हू के पहिये के समान घूमता हुआ मानसोत्तर पर्वत के ऊपर चक्कर लगाता है। इस धुरी में-जिसका मूल भाग जुड़ा हुआ है, ऐसी एक धुरी और है। वह लंबाई में इससे चौथाई है। उसका ऊपरी भाग तैलयन्त्र के धुरे के समान ध्रुवलोक से लगा हुआ है।

इस रथ में बैठने का स्थान छत्तीस लाख योजन लंबा और नौ लाख योजन चौड़ा है। इसक जुआ भी छत्तीस लाख योजन ही लंबा है। उसमें अरुण नाम के सारथि ने गायत्री आदि छन्दों के-से नाम वाले सात घोड़े जोत रखे हैं, वे ही इस रथ पर बैठे हुए भगवान् सूर्य को ले चलते हैं।

सूर्यदेव के आगे उन्हीं की ओर मुँह करके बैठे हुए अरुण उनके सारथि का कार्य करते हैं। भगवान् सूर्य के आगे अँगूठे के पोरुए के बराबर आकार वाले वालखिल्यादि साठ हजार ऋषि स्वस्तिवाचन के लिये नियुक्त हैं। वे उनकी स्तुति करते रहते हैं। इनके अतिरिक्त ऋषि, गन्धर्व, अप्सरा, नाग, यक्ष, राक्षस और देवता भी-जो कुल मिलाकर चौदह हैं, किन्तु जोड़े से रहने के कारण सात गण कहे जाते हैं-प्रत्येक मास में भिन्न-भिन्न नामों वाले होकर अपने भिन्न-भिन्न कर्मों से प्रत्येक मास में भिन्न-भिन्न नाम धारण करने वाले आत्मस्वरूप भगवान् सूर्य की दो-दो मिलकर उपासना करते हैं।

इस प्रकार भगवान् सूर्य भूमण्डल के नौ करोड़, इक्यावन लाख योजन लंबे घेरे में से प्रत्येक क्षण में दो हजार दो योजन की दूरी पार कर लेते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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