नवम स्कन्ध: दशमोऽध्याय: अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: दशम अध्यायः श्लोक 29-43 का हिन्दी अनुवाद
इधर तो ब्रह्मा आदि बड़े आनन्द से भगवान की लीलाओं का गान कर रहे थे और उधर जब भगवान को यह मालूम हुआ कि भरत जी केवल गोमूत्र में पकाया हुआ जौ का दलिया खाते हैं, वल्कल पहनते हैं और पृथ्वी पर डाभ बिछाकर सोते हैं एवं उन्होंने जटाएँ बढ़ा रखी हैं, तब वे बहुत दुःखी हुए। उनकी दशा का स्मरण कर परमकरुणाशील भगवान का हृदय भर आया। जब भरत को मालूम हुआ कि मेरे बड़े भाई भगवान श्रीराम जी आ रहे हैं, तब वे पुरवासी, मन्त्री और पुरोहितों को साथ लेकर एवं भगवान की पादुकाएँ सिर पर रखकर उनकी अगवानी के लिये चले। जब भरत जी अपने रहने के स्थान नन्दिग्राम से चले, तब लोग उनके साथ-साथ मंगलगान करते, बाजे बजाते चलने लगे। वेदवादी ब्राह्मण बार-बार वेद मन्त्रों का उच्चारण करने लगे और उसकी ध्वनि चारों ओर गूँजने लगी। सुनहरी कामदार पताकाएँ फहराने लगीं। सोने से मढ़े हुए तथा रंग-बिरंगी ध्वजाओं से सजे हुए रथ, सुनहले साज से सजाये हुए सुन्दर घोड़े तथा सोने के कवच पहने हुए सैनिक उनके साथ-साथ चलने लगे। सेठ-साहूकार, श्रेष्ठ वारांगनाएँ, पैदल चलने वाले सेवक और महाराजाओं के योग्य छोटी-बड़ी सभी वस्तुएँ उनके साथ चल रही थीं। भगवान को देखते ही प्रेम के उद्रेक से भरत जी का हृदय गद्गद हो गया, नेत्रों में आँसू छलक आये, वे भगवान के चरणों पर गिर पड़े। उन्होंने प्रभु के सामने उनकी पादुकाएँ रख दीं और हाथ जोड़कर खड़े हो गये। नेत्रों से आँसू की धारा बहती जा रही थी। भगवान ने अपने दोनों हाथों से पकड़कर बहुत देर तक भरत जी को हृदय से लगाये रखा। भगवान के नेत्रजल से भरत जी का स्नान हो गया। इसके बाद सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ भगवान श्रीराम जी ने ब्राह्मण और पूजनीय गुरुजनों को नमस्कार किया तथा सारी प्रजा ने बड़े प्रेम से सिर झुकाकर भगवान के चरणों में प्रणाम किया। उस समय उत्तर कोसल देश की रहने वाली समस्त प्रजा अपने स्वामी भगवान को बहुत दिनों के बाद आये देख अपने दुपट्टे हिला-हिलाकर पुष्पों की वर्षा करती हुई आनन्द से नाचने लगी। भरत जी ने भगवान की पादुकाएँ लीं, विभीषण ने श्वेत चँवर, सुग्रीव ने पंखा और श्रीहनुमान जी ने श्वेत छत्र ग्रहण किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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