दशम स्कन्ध: अष्टपंचाशत्त्म अध्याय (पूर्वार्ध)
श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: अष्टपंचाशत्त्म अध्याय श्लोक 41-55 का हिन्दी अनुवाद
भगवान श्रीकृष्ण ने राजा नग्नजित का ऐसा प्रण सुनकर कमर में फेंट कस ली और अपने सात रूप बनाकर खेल-खेल में ही उन बैलों को नाथ लिया। इससे बैलों का घमंड चूर हो गया और उनका बल-पौरुष भी जाता रहा। अब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें रस्सी से बाँधकर इस प्रकार खींचने लगे, जैसे खेलते समय नन्हा-सा बालक काठ के बैलों को घसीटता है। राजा नग्नजित को बड़ा विस्मय हुआ। उन्होंने प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण को अपनी कन्या का दान कर दिया और सर्वशक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण ने भी अपने अनुरूप पत्नी सत्या का विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया। रानियों ने देखा कि हमारी कन्या को उसके अत्यन्त प्यारे भगवान श्रीकृष्ण ही पति के रूप में प्राप्त हो गये हैं। उन्हें बड़ा आनन्द हुआ और चारों ओर बड़ा भारी उत्सव मनाया जाने लगा। शंख, ढोल, नगारे बजने लगे। सब ओर गाना-बजाना होने लगा। ब्राह्मण आशीर्वाद देने लगे। सुन्दर वस्त्र, पुष्पों के हार और गहनों से सज-धजकर नगर के नर-नारी आनन्द मनाने लगे। राजा नग्नजित ने दस हज़ार गौएँ और तीन हज़ार ऐसी नवयुवती दासियाँ जो सुन्दर वस्त्र तथा गले में स्वर्णहार पहने हुए थीं, दहेज में दीं। इसके साथ ही नौ हज़ार हाथी, नौ लाख रथ, नौ करोड़ घोड़े और नौ अरब सेवक भी दहेज में दिये। कोसलनरेश राजा नग्नजित ने कन्या और दामाद को रथ पर चढ़ाकर एक बड़ी सेना के साथ विदा किया। उस समय उनका हृदय वात्सल्य-स्नेह के उद्वेग से द्रवित हो रहा था। परीक्षित! यदुवंशियों ने और राजा नग्नजित के बैलों ने पहले बहुत-से राजाओं का बल-पौरुष धूल में मिला दिया था। जब उन राजाओं ने यह समाचार सुना, तब उनसे भगवान श्रीकृष्ण की यह विजय सहन न हुई। उन लोगों ने नाग्नजिती सत्या को लेकर जाते समय मार्ग में भगवान श्रीकृष्ण को घेर लिया और वे बड़े वेग से उन पर बाणों की वर्षा करने लगे। उस समय पाण्डववीर अर्जुन ने अपने मित्र भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय करने के लिये गाण्डीव धनुष धारण करके- जैसे सिंह छोटे-मोटे पशुओं को खदेड़ दे, वैसे ही उन नरपतियों को मार-पीटकर भगा दिया। तदनन्तर यदुवंशशिरोमणि देवकीनन्दन भगवान श्रीकृष्ण उस दहेज और सत्या के साथ द्वारका में आये और वहाँ रहकर गृहस्थोचित विहार करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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