श्रीमद्भागवत माहात्म्य द्वितीय अध्याय
श्रीमद्भागवत माहात्म्य: द्वितीय अध्यायः श्लोक 13-23 का हिन्दी अनुवाद
सूत जी कहते हैं- ऋषिगण! जब उन्होंने इस प्रकार समझाया, तब श्रीकृष्ण की पत्नियाँ सदा प्रसन्न रहने वाली यमुना जी से पुनः बोलीं। उस समय उनके हृदय में इस बात की बड़ी लालसा थी कि किसी उपाय से उद्धव जी का दर्शन हो, जिससे हमें अपने प्रियतम के नित्य संयोग का सौभाग्य प्राप्त हो सके। श्रीकृष्णपत्नियों ने कहा- सखी! तुम्हारा ही जीवन धन्य है; क्योंकि तुम्हें कभी भी अपने प्राणनाथ के वियोग का दुःख नहीं भोगना पड़ता। जिन श्रीराधिका जी की कृपा से तुम्हारे अभीष्ट अर्थ की सिद्धि हुई है, उनकी अब हम लोग भी दासी हुईं। किन्तु तुम अभी कह चुकी हो कि उद्धव जी के मिलने पर ही हमारे सभी मनोरथ पूर्ण होंगे; इसलिये कालिन्दी! अब ऐसा कोई उपाय बताओ, जिससे उद्धव जी भी शीघ्र मिल जायें। सूत जी कहते हैं- श्रीकृष्ण की रानियों ने जब यमुना जी से इस प्रकार कहा, तब वे भगवान श्रीकृष्णचन्द्र की सोलह कलाओं का चिन्तन करती हुई उनसे कहने लगीं- "जब भगवान श्रीकृष्ण अपने परम धाम को पधारने लगे, तब उन्होंने अपने मन्त्री उद्धव से कहा- ‘उद्धव! साधना करने की भूमि है बदरिकाश्रम, अतः अपनी साधना पूर्ण करने के लिये तुम वहीं जाओ।’ भगवान की इस आज्ञा के अनुसार उद्धव जी इस समय अपने साक्षात् स्वरूप से बदरिकाश्रम में विराजमान हैं और वहाँ जाने वाले जिज्ञासु लोगों को भगवान के बताये हुए ज्ञान का उपदेश करते रहते हैं। साधना की फलरूपा भूमि है- व्रजभूमि; इसे भी इसके रहस्यों सहित भगवान ने पहले ही उद्धव को दे दिया था। किन्तु वह फलभूमि यहाँ से भगवान के अन्तर्धान होने के साथ ही स्थूल दृष्टि से परे जा चुकी है; इसीलिये इस समय यहाँ उद्धव प्रत्यक्ष दिखायी नहीं पड़ते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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