श्रीमद्भागवत महापुराण पंचम स्कन्ध अध्याय 17 श्लोक 20-24

पंचम स्कन्ध: सप्तदश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध: सप्तदश अध्यायः श्लोक 20-24 का हिन्दी अनुवाद


आप जिन पुरुषों को मधु-आसवादि पाने के कारण अरुण नयन और मतवाले जान पड़ते हैं, वे माया के वशीभूत होकर ही ऐसा मिथ्या दर्शन करते हैं तथा आपके चरणस्पर्श से ही चित्त चंचल हो जाने के कारण नागपत्नियाँ लज्जावश आपकी पूजा करने में असमर्थ हो जाती हैं।

वेदमन्त्र आपको जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और लय का कारण बताते हैं; परन्तु आप स्वयं इन तीनों विकारों से रहित हैं; इसलिये आपको ‘अनन्त’ कहते हैं। आपके सहस्र मस्तकों पर यह भूमण्डल सरसों के दाने के समान रखा हुआ है, आपको तो यह भी नहीं मालूम होता कि वह कहाँ स्थित है। जिनसे उत्पन्न हुआ मैं अहंकाररूप अपने त्रिगुणमय तेज से देवता, इन्द्रिय और भूतों की रचना करता हूँ-वे विज्ञान के आश्रय भगवान् ब्रह्मा जी भी आपके ही महत्तत्त्वसंयज्ञ प्रथम गुणमय स्वरूप हैं।

महात्मन्! महत्तत्त्व, अहंकार-इन्द्रियाभिमानी देवता, इन्द्रियाँ और पंचभूत आदि हम सभी डोरी में बँधे हुए पक्षी के समान आपकी क्रियाशक्ति के वशीभूत रहकर आपकी ही कृपा से इस जगत् की रचना करते हैं। सत्त्वादि गुणों की सृष्टि से मोहित हुआ यह जीव आपकी ही रची हुई तथा कर्मबन्धन में बाँधने वाली माया को कदाचित् जान भी लेता है, किन्तु उससे मुक्त होने का उपाय उसे सुगमता से नहीं मालूम होता। इस जगत् की उत्पत्ति और प्रलय भी आपके ही रूप हैं। ऐसे आपको मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ’।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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