श्रीमद्भागवत महापुराण पंचम स्कन्ध अध्याय 16 श्लोक 26-29

पंचम स्कन्ध: षोडश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध: षोडश अध्यायः श्लोक 26-29 का हिन्दी अनुवाद


राजन्! कमल की कर्णिका के चारों ओर जैसे केसर होता है-उसी प्रकार मेरु के मूल देश में उसके चारों ओर कुरंग, कुरर, कुसुम्भ, वैकंक, त्रिकुट, शिशिर, पतंग, रुचक, निषध, शिनीवास, कपिल, शंख, वैदूर्य, जारूधि, हंस, ऋषभ, नाग, कालंजर और नारद आदि बीस पर्वत और हैं।

इनके सिवा मेरु के पूर्व की ओर जठर और देवकूट नाम के दो पर्वत हैं, जो अठारह-अठारह हजार योजन लंबे तथा दो-दो हजार योजन चौड़े और ऊँचे हैं।

इसी प्रकार पश्चिम की ओर पवन और पारियात्र, दक्षिण की ओर कैलास और करवीर तथा उत्तर की ओर त्रिश्रृंग और मकर नाम के पर्वत हैं। इन आठ पहाड़ों से चारों ओर घिरा हुआ सुवर्णगिरि मेरु अग्नि के समान जगमगाता रहता है। कहते हैं, मेरु के शिखर पर बीचोंबीच भगवान् ब्रह्मा जी की सुवर्णमयी पुरी है-जो आकार में समचौरस तथा करोड़ योजन विस्तार वाली है। उसके नीचे पूर्वादि आठ दिशा और उपदिशाओं में उनके अधिपति इन्द्रादि आठ लोकपालों की आठ पुरियाँ हैं। वे अपने-अपने स्वामी के अनुरूप उन्हीं-उन्हीं दिशाओं में हैं तथा परिमाण में ब्रह्मा जी की पुरी से चौथाई हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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