श्रीमद्भागवत महापुराण नवम स्कन्ध अध्याय 9 श्लोक 28-41

नवम स्कन्ध: नवमोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: नवम अध्यायः श्लोक 28-41 का हिन्दी अनुवाद


राजन! यह मनुष्य-शरीर जीव को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति कराने वाला है। इसलिये वीर! इस शरीर को नष्ट कर देना सभी पुरुषार्थों की हत्या कही जाती है। फिर यह ब्राह्मण तो विद्वान् है। तपस्या, शील और बड़े-बड़े गुणों से सम्पन्न है। यह उन पुरुषोत्तम परब्रह्म की समस्त प्राणियों के आत्मा के रूप में आराधना करना चाहता है, जो समस्त पदार्थों में विद्यमान रहते हुए भी उनके पृथक्-पृथक् गुणों से छिपे हुए हैं। राजन! आप शक्तिशाली हैं। आप धर्म का मर्म भलीभाँति जानते हैं। जैसे पिता के हाथों पुत्र की मृत्यु उचित नहीं, वैसे ही आप-जैसे श्रेष्ठ राजर्षि के हाथों मेरे श्रेष्ठ ब्राह्मण पति का वध किसी प्रकार उचित नहीं है। आपका साधु-समाज में बड़ा सम्मान है। भला आप मेरे परोपकारी, निरपराध, श्रोत्रिय एवं ब्रह्मवादी पति का वध कैसे ठीक समझ रहे हैं? ये तो गौ के समान निरीह हैं। फिर भी यदि आप इन्हें खा ही डालना चाहते हैं, तो पहले मुझे खा डालिये। क्योंकि अपने पति के बिना मैं मुर्दे के समान हो जाऊँगी और एक क्षण भी जीवित न रह सकूँगी’।

ब्राह्मण पत्नी बड़ी ही करुणापूर्ण वाणी में इस प्रकार कहकर अनाथ की भाँति रोने लगी। परन्तु सौदास ने शाप से मोहित होने के कारण उसकी प्रार्थना पर कुछ भी ध्यान न दिया और वह उस ब्राह्मण को वैसे ही खा गया, जैसे बाघ किसी पशु को खा जाये। जब ब्राह्मणी ने देखा कि राक्षस ने मेरे गर्भाधान के लिये उद्यत पति को खा लिया, तब उसे बड़ा शोक हुआ। सती ब्राह्मणी ने क्रोध करके राजा को शाप दे दिया। ‘रे पापी! मैं अभी काम से पीड़ित हो रही थी। ऐसी अवस्था में तूने मेरे पति को खा डाला है। इसलिये मूर्ख! जब तू स्त्री से सहवास करना चाहेगा, तभी तेरी मृत्यु हो जायेगी, यह बात मैं तुझे सुझाये देती हूँ’। इस प्रकार मित्रसह को शाप देकर ब्राह्मणी अपने पति की अस्थियों को धधकती हुई चिता में डालकर स्वयं भी सती हो गयी और उसने वही गति प्राप्त की, जो उसके पतिदेव को मिली थी। क्यों न हो, वह अपने पति को छोड़कर और किसी लोक में जाना भी तो नहीं चाहती थी।

बारह वर्ष बीतने पर राजा सौदास शाप से मुक्त हो गये। जब वे सहवास के लिये अपनी पत्नी के पास गये, तब उसने इन्हें रोक दिया। क्योंकि उसे उस ब्राह्मणी के शाप का पता था। इसके बाद उन्होंने स्त्री-सुख का बिक्लुल परित्याग ही कर दिया। इस प्रकार अपने कर्म के फलस्वरूप वे सन्तानहीन हो गये। तब वसिष्ठ जी ने उनके कहने से मदयन्ती को गर्भाधान कराया। मदयन्ती सात वर्ष तक गर्भ धारण किये रही, किन्तु बच्चा पैदा नहीं हुआ। तब वसिष्ठ जी ने पत्थर से उसके पेट पर आघात किया। इससे जो बालक हुआ, वह अश्म (पत्थर) की चोट से पैदा होने के कारण ‘अश्मक’ कहलाया। अश्मक से मूलक का जन्म हुआ। जब परशुराम जी पृथ्वी को क्षत्रियहीन कर रहे थे, तब स्त्रियों ने उसे छिपाकर रख लिया था। इसी से उसका एक नाम ‘नारीकवच’ भी हुआ। उसे मूलक इसलिये कहते हैं कि वह पृथ्वी के क्षत्रियहीन हो जाने पर उस वंश का मूल (प्रवर्तक) बना। मूलक के पुत्र हुए दशरथ, दशरथ के ऐडविड और ऐडविड के राजा विश्वसह। विश्वसह के पुत्र ही चक्रवर्ती सम्राट् खट्वांग हुए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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