श्रीमद्भागवत महापुराण षष्ठ स्कन्ध अध्याय 11 श्लोक 25-27

षष्ठ स्कन्ध:एकादश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: षष्ठ स्कन्ध: एकादश अध्यायः श्लोक 25-27 का हिन्दी अनुवाद


सर्वसौभाग्यनिधे! मैं आपको छोड़कर स्वर्ग, ब्रह्मलोक, भूमण्डल का साम्राज्य, रसातल का एकच्छत्र राज्य, योग की सिद्धियाँ-यहाँ तक कि मोक्ष भी नहीं चाहता।

जैसे पक्षियों के पंखहीन बच्चे अपनी माँ की बाट जोहते रहते हैं, जैसे भूखे बछड़े अपनी माँ का दूध पीने के लिये आतुर रहते हैं और जैसे वियोगिनी पत्नी अपने प्रवासी प्रियतम से मिलने के लिये उत्कण्ठित रहती है-वैसे ही कमलनयन! मेरा मन आपके दर्शन के लिये छटपटा रहा है।

प्रभो! मैं मुक्ति नहीं चाहता। मेरे कर्मों के फलस्वरूप मुझे बार-बार जन्म-मृत्यु के चक्कर में भटकना पड़े, इसकी परवा नहीं। परन्तु मैं जहाँ-जहाँ जाऊँ, जिस-जिस योनि में जन्मूँ, वहाँ-वहाँ भगवान् के प्यारे भक्तजनों से मेरी प्रेम-मैत्री बनी रहे।

स्वामिन्! मैं केवल यही चाहता हूँ कि जो लोग आपकी माया से देह-गेह और स्त्री-पुत्र आदि में आसक्त हो रहे हैं, उनके साथ मेरा कभी किसी प्रकार का भी सम्बन्ध न हो’।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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