प्रथम स्कन्ध: द्वितीय अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: प्रथम स्कन्धः द्वितीय अध्यायः श्लोक 29-34 का हिन्दी अनुवाद
ये सत्त्व, रज और तम- तीनों गुण उसी माया के विलास हैं; इनके भीतर रहकर भगवान इनसे युक्त-सरीखे मालूम पड़ते हैं। वास्तव में तो वे परिपूर्ण विज्ञानघन हैं। अग्नि तो वस्तुतः एक ही है, परन्तु जब वह अनेक प्रकार की लकड़ियों में प्रकट होती है, तब अनेक-सी मालूम पड़ती है। वैसे ही सबके आत्मरूप भगवान तो एक ही हैं, परन्तु प्राणियों की अनेकता से अनेक-जैसे जान पड़ते हैं। भगवान ही इस सूक्ष्म भूत-तन्मात्रा, इन्द्रिय तथा अन्तःकरण आदि गुणों के विकार भूत भावों के द्वारा नाना प्रकार की योनियों का निर्माण करते हैं और उनमें भिन्न-भिन्न जीवों के रूप में प्रवेश करके उन-उन योनियों के अनुरूप विषयों का उपभोग करते-कराते हैं। वे ही सम्पूर्ण लोगों की रचना करते हैं और देवता, पशु-पक्षी, मनुष्य आदि योनियों में लीलावतार ग्रहण करके सत्त्वगुण के द्वारा जीवों का पालन-पोषण करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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