श्रीमद्भागवत महापुराण प्रथम स्कन्ध अध्याय 19 श्लोक 36-40

प्रथम स्कन्ध: एकोनविंश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: प्रथम स्कन्धः एकोनविंश अध्यायः श्लोक 36-40 का हिन्दी अनुवाद


भगवान श्रीकृष्ण की कृपा न होती तो आप-सरीखे एकान्त वनवासी अव्यक्तगति परमसिद्ध पुरुष स्वयं पधारकर इस मृत्यु के समय हम-जैसे प्राकृत मनुष्यों को क्यों दर्शन देते।

आप योगियों के परम गुरु हैं, इसलिये मैं आपसे परमसिद्धि के स्वरूप और साधन के सम्बन्ध में प्रश्न कर रहा हूँ। जो पुरुष सर्वथा मरणासन्न है, उसको क्या करना चाहिये?

भगवन्! साथ यह भी बतलाइये कि मनुष्यमात्र को क्या करना चाहिये। वे किसका श्रवण, किसका जप, किसका स्मरण और किसका भजन करें तथा किसका त्याग करें?

भगवत्स्वरूप मुनिवर! आपका दर्शन अत्यन्त दुर्लभ है; क्योंकि जितनी देर एक गाय दुही जाती है, गृहस्थों के घर पर उतनी देर भी तो आप नहीं ठहरते।

सूत जी कहते हैं- जब राजा ने बड़ी ही मधुर वाणी में इस प्रकार सम्भाषण एवं प्रश्न किये, तब समस्त धर्मों के मर्मज्ञ व्यासनन्दन भगवान श्रीशुकदेव जी उनका उत्तर देने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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