दशम स्कन्ध: पंचत्रिंश अध्याय (पूर्वार्ध)
श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: पंचत्रिंश अध्याय श्लोक 22-26 का हिन्दी अनुवाद
सखी! देखो कैसा सौन्दर्य है! मदभरी आँखें कुछ चढ़ी हुई हैं। कुछ-कुछ ललाई लिये हुए कैसी भली जान पड़ती हैं। गले में वनमाला लहरा रही है। सोने के कुण्डलों की कान्ति से वे अपने कोमल कपोलों को अलंकृत कर रहे हैं। इसी से मुँह पर अध पके बेर के समान कुछ पीलापन जान पड़ता है और रोम-रोम से विशेष करके मुखकमल से प्रसन्नता फूटी पड़ती है। देखो, अब वे अपने सखा ग्वालबालों का सम्मान करके उन्हें विदा कर रहे हैं। देखो, देखो सखी! व्रज-विभूषण श्रीकृष्ण गजराज के समान मदभरी चाल से इस सन्ध्या वेला में हमारी ओर आ रहे हैं। अब व्रज में रहने वाली गौओं का, हम लोगों का दिनभर का असह्य विरह-ताप मिटाने के लिये उदित होने वाले चन्द्रमा की भाँति ये हमारे प्यारे श्यामसुन्दर समीप चले आ रहे हैं। श्री शुकदेव जी कहते हैं - परीक्षित! बड़भागिनी गोपियों का मन श्रीकृष्ण में ही लगा रहता था। वे श्रीकृष्णमय हो गयी थीं। जब भगवान श्रीकृष्ण दिन में गौओं को चराने के लिये वन में चले जाते, तब वे उन्हीं का चिन्तन करतीं रहतीं और अपनी-अपनी सखियों के साथ अलग-अलग उन्हीं की लीलाओं का गान करके उसी में रम जाती। इस प्रकार उनके दिन बीत जाते।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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