एकादश स्कन्ध: षष्ठ अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: एकादश स्कन्ध: षष्ठ अध्याय श्लोक 17-29 का हिन्दी अनुवाद
श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! समस्त देवताओं और भगवान शंकर के साथ ब्रह्मा जी ने इस प्रकार भगवान की स्तुति की। इसके बाद वे प्रणाम करके अपने धाम में जाने के लिये आकाश में स्थित होकर भगवान से इस प्रकार कहने लगे। ब्रह्मा जी ने कहा- सर्वात्मन् प्रभो! पहले हम लोगों ने आपसे अवतार लेकर पृथ्वी का भार उतारने के लिये प्रार्थना के अनुसार ही यथोचित रूप से पूरा कर दिया। आपने सत्यपरायण साधु पुरुषों के कल्याणार्थ धर्म की स्थापना भी कर दी और दसों दिशाओं में ऐसी कीर्ति फैला दी, जिसे सुन-सुनाकर सब लोग अपने मन का मैल मिटा देते हैं। आपने यह सर्वोत्तम रूप धारण करके यदुवंश में अवतार लिया और जगत् के हित के लिये उदारता और पराक्रम से भरी अनेकों लीलाएँ कीं। प्रभो! कलियुग में जो साधुस्वभाव मनुष्य आपकी इन लीलाओं का श्रवण-कीर्तन करेंगे वे सुगमता से ही इस अज्ञानरूप अन्धकार से पार हो जायेंगे। पुरुषोत्तम सर्वशक्तिमान् प्रभो! आपको यदुवंश में अवतार ग्रहण किये एक सौ पचीस वर्ष बीत गये हैं। सर्वाधार! हम लोगों का ऐसा कोई काम बाकी नहीं है, जिसे पूर्ण करने के लिये आपको यहाँ रहने की आवश्यकता हो। ब्राह्मणों के शाप के कारण आपका यह कुल भी एक प्रकार से नष्ट हो ही चुका है। इसलिये वैकुण्ठनाथ! यदि आप उचित समझें तो अपने परमधाम में पधारिये और अपने सेवक हम लोकपालों का तथा हमारे लोकों का पालन-पोषण कीजिये। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- ब्रह्मा जी! आप जैसा कहते हैं, मैं पहले से ही वैसा निश्चय कर चुका हूँ। मैंने आप लोगों का सब काम पूरा करके पृथ्वी का भार उतार दिया। परन्तु अभी एक काम बाकी है; वह यह कि यदुवंशी बल-विक्रम, वीरता-शूरता और धन सम्पत्ति से उन्मत्त हो रहे हैं। ये सारी पृथ्वी को ग्रस लेने पर तुले हुए हैं। इन्हें मैंने ठीक वैसे ही रोक रखा है, जैसे समुद्र को उसके तट की भूमि। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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