एकादश स्कन्ध: विंश अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: एकादश स्कन्ध: विंश अध्याय श्लोक 32-37 का हिन्दी अनुवाद
उद्धव जी! सबसे श्रेष्ठ एवं महान् निःश्रेयस (परम कल्याण) तो निरपेक्षता का ही दूसरा नाम है। इसलिए जो निष्काम और निरपेक्ष होता है, उसी को मेरी भक्ति प्राप्त होती है। मेरे अनन्य प्रेमी भक्तों का और उन समदर्शी महात्माओं का; जो बुद्धि से अतीत परमतत्त्व को प्राप्त हो चुके हैं, इन विधि और निषेध से होने वाले पुण्य और पाप से कोई सम्बन्ध ही नहीं होता। इस प्रकार जो लोग मेरे बतालाये हुए इन ज्ञान, भक्ति और कर्मयोगों का आश्रय लेते हैं, वे मेरे परम कल्याण-स्वरूप धाम को प्राप्त होते हैं, क्योंकि वे परब्रह्मतत्त्व को जान लेते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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