तृतीय स्कन्ध: एकविंश अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: तृतीय स्कन्ध: एकविंश अध्यायः श्लोक 29-44 का हिन्दी अनुवाद
मैत्रेय जी कहते हैं- विदुर जी! कर्दम ऋषि से इस प्रकार सम्भाषण करके, इन्द्रियों के अन्तर्मुख होने पर प्रकट होने वाले श्रीहरि सरस्वती नदी से घिरे हुए बिन्दुसर तीर्थ से (जहाँ कर्दम ऋषि तप कर रहे थे) अपने लोक को चले गये। भगवान के सिद्धमार्ग (वैकुण्ठ मार्ग) की सभी सिद्धेश्वर प्रशंसा करते हैं। वे कर्दम जी के देखते-देखते अपने लोक को सिधार गये। उस समय गरुड़ जी के पक्षों से जो साम की आधार भूता ऋचाएँ निकल रही थीं, उन्हें वे सुनते जाते थे। विदुर जी! श्रीहरि के चले जाने पर भगवान कर्दम उनके बताये हुए समय की प्रतीक्षा करते हुए बिन्दु सरोवर पर ही ठहरे रहे। वीरवर! इधर मनु जी भी महारानी शतरूपा के साथ सुवर्णजटित रथ पर सवार होकर तथा उस पर अपनी कन्या को भी बिठाकर पृथ्वी पर विचरते हुए, जो दिन भगवान ने बताया था, उसी दिन शान्तिपरायण महर्षि कर्दम के उस आश्रम पर पहुँचे। सरस्वती के जल से भरा हुआ यह बिन्दु सरोवर वह स्थान है, जहाँ अपने शरणागत भक्त कर्दम के प्रति उत्पन्न हुई अत्यन्त करुणा के वशीभूत हुए भगवान् के नेत्रों से आँसुओं की बूँदें गिरी थीं। यह तीर्थ बड़ा पवित्र है, इसका जल कल्याणमय और अमृत के समान मधुर है तथा महर्षिगण सदा इसका सेवन करते हैं। उस समय बिन्दु सरोवर पवित्र वृक्ष-लताओं से घिरा हुआ था, जिनमें तरह-तरह की बोली बोलने वाले पवित्र मृग और पक्षी रहते थे, वह स्थान सभी ऋतुओं के फल और फूलों से सम्पन्न था और सुन्दर वन श्रेणी भी उसकी शोभा बढ़ाती थी। वहाँ झुंड-के-झुंड मतवाले पक्षी चहक रहे थे, मतवाले भौंरे मंडरा रहे थे, उन्मत्त मयूर अपने पिच्छ फैला-फैलाकर नट की भाँति नृत्य कर रहे थे और मतवाले कोकिल कुहू-कुहू करके मानो एक-दूसरे को बुला रहे थे। वह आश्रम कदम्ब, चम्पक, अशोक, करंज, बकुल, असन, कुन्द, मन्दार, कुटज और नये-नये आम के वृक्षों से अलंकृत था। वहाँ जलकाग, बत्तख आदि जल पर तैरने वाले पक्षी हंस, कुरर, जलमुर्ग, सारस, चकवा और चकोर मधुर स्वर से कलरव कर रहे थे। हरिन, सूअर, स्याही, नीलगाय, हाथी, लंगूर, सिंह, वानर, नेवले और कस्तूरी मृग आदि पशुओं से भी वह आश्रम घिरा हुआ था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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