श्रीमद्भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध अध्याय 18 श्लोक 1-14

अष्टम स्कन्ध: अथाष्टादशोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: अष्टादश अध्यायः श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद


वामन भगवान का प्रकट होकर राजा बलि की यज्ञशाला में पधारना

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! इस प्रकार जब ब्रह्मा जी ने भगवान की शक्ति और लीला की स्तुति की, तब जन्म-मृत्यु रहित भगवान अदिति के सामने प्रकट हुए। भगवान के चार भुजाएँ थीं; उनमें वे शंख, गदा, कमल और चक्र धारण किये हुए थे। कमल के समान कोमल और बड़े-बड़े नेत्र थे। पीताम्बर शोभायमान हो रहा था। विशुद्ध श्यामवर्ण का शरीर था। मकराकृति कुण्डलों की कान्ति से मुखकमल की शोभा और भी उल्लसित हो रही थी। वक्षःस्थल पर श्रीवत्स का चिह्न, हाथों में कंगन और भुजाओं में बाजूबंद, सिर पर किरीट, कमर में करधनी की लड़ियाँ और चरणों में सुन्दर नूपुर जगमगा रहे थे।

भगवान गले में अपनी स्वरूपभूत वनमाला धारण किये हुए थे, जिसके चारों ओर झुंड-के-झुंड भौंरे गुंजार कर रहे थे। उनके कण्ठ में कौस्तुभ मणि सुशोभित थी। भगवान की अंग कान्ति से प्रजापति कश्यप जी के घर का अन्धकार नष्ट हो गया। उस समय दिशाएँ निर्मल हो गयीं। नदी और सरोवरों का जल स्वच्छ हो गया। प्रजा के हृदय में आनन्द की बाढ़ आ गयी। सब ऋतुएँ एक साथ अपना-अपना गुण प्रकट करने लगीं। स्वर्गलोक, अन्तरिक्ष, पृथ्वी, देवता, गौ, द्विज और पर्वत- इन सबके हृदय में हर्ष का संचार हो गया।

परीक्षित! जिस समय भगवान ने जन्म ग्रहण किया, उस समय चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र पर थे। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की श्रवण नक्षत्र वाली द्वादशी थी। अभिजित् मुहूर्त में भगवान का जन्म हुआ था। सभी नक्षत्र और तारे भगवान के जन्म को मंगलमय सूचित कर रहे थे। परीक्षित! जिस तिथि में भगवान का जन्म हुआ था, उसे ‘विजय द्वादशी’ कहते हैं। जन्म के समय सूर्य आकाश के मध्य भाग में स्थित थे। भगवान के अवतार के समय शंख, ढोल, मृदंग, डफ और नगाड़े आदि बाजे बजने लगे। इन तरह-तरह के बाजों और तुरहियों की तुमुल ध्वनि होने लगी। अप्सराएँ प्रसन्न होकर नाचने लगीं। श्रेष्ठ गन्धर्व गाने लगे। मुनि, देवता, मनु, पितर और अग्नि स्तुति करने लगे। सिद्ध, विद्याधर, किम्पुरुष, किन्नर, चारण, यक्ष, राक्षस, पक्षी, मुख्य-मुख्य नागगण और देवताओं के अनुचर नाचने-गाने एवं भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे तथा उन लोगों ने अदिति के आश्रम को पुष्पों की वर्षा से ढक दिया। जब अदिति ने अपने गर्भ से प्रकट हुए परम पुरुष परमात्मा देखा, तो वह अत्यन्त आश्चर्यचकित और परमानन्दित हो गयी। प्रजापति कश्यप जी भी भगवान को अपनी योगमाया से शरीर धारण किये हुए देख विस्मित हो गये और कहने लगे ‘जय हो! जय हो।

परीक्षित! भगवान स्वयं अव्यक्त एवं चित्स्वरूप हैं। उन्होंने जो परम कान्तिमय आभूषण एवं आयुधों से युक्त वह शरीर ग्रहण किया था, उसी शरीर से, कश्यप और अदिति के देखते-देखते वामन ब्रह्मचारी का रूप धारण कर लिया- ठीक वैसे ही, जैसे नट अपना वेष बदल ले। क्यों न हो, भगवान की लीला तो अद्भुत है ही। भगवान को वामन ब्रह्मचारी के रूप में देखकर महर्षियों को बड़ा आनन्द हुआ। उन लोगों ने कश्यप प्रजापति को आगे करके उनके जातकर्म आदि संस्कार करवाये। जब उनका उपनयन-संस्कार होने लगा, तब गायत्री के अधिष्ठातृ-देवता स्वयं सविता ने उन्हें गायत्री का उपदेश किया। देवगुरु बृहस्पति जी ने यज्ञोपवीत और कश्यप ने मेखला दी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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