श्रीमद्भागवत महापुराण नवम स्कन्ध अध्याय 15 श्लोक 1-15

नवम स्कन्ध: पञ्चदशोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: पञ्चदश अध्यायः श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद


ऋचीक, जमदग्नि और परशुराम जी का चरित्र

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! उर्वशी के गर्भ से पुरुरवा के छः पुत्र हुए- आयु, श्रुतायु, सत्यायु, रय, विजय और जय। श्रुतायु का पुत्र था वसुमान्, सत्यायु का श्रुतंजय, रय का एक और जय का अमित। विजय का भीम, भीम का कांचन, कांचन का होत्र और होत्र का पुत्र था जह्नु। ये जह्नु वही थे, जो गंगा जी को अपनी अंजलि में लेकर पी गये थे। जह्नु का पुत्र था पूरु, पूरु का बलाक और बलाक का अजक। अजक का कुश था। कुश के चार पुत्र थे- कुशाम्बु, तनय, वसु और कुशनाभ। इनमें से कुशाम्बु के पुत्र गाधि हुए।

परीक्षित! गाधि की कन्या का नाम था सत्यवती। ऋचीक ऋषि ने गाधि से उनकी कन्या माँगी। गाधि ने यह समझकर कि ये कन्या के योग्य वर नहीं है, ऋचीक से कहा- ‘मुनिवर! हम लोग कुशिक वंश के हैं। हमारी कन्या मिलनी कठिन है। इसलिये आप एक हजार ऐसे घोड़े लाकर मुझे शुल्क रूप में दीजिये, जिनका सारा शरीर तो श्वेत हो, परन्तु एक-एक कान श्याम वर्ण का हो’। जब गाधि ने यह बात कही, तब ऋचीक मुनि उनका आशय समझ गये और वरुण के पास जाकर वैसे ही घोड़े ले आये तथा उन्हें देकर सुन्दरी सत्यवती से विवाह कर लिया।

एक बार महर्षि ऋचीक से उनकी पत्नी और सास दोनों ने ही पुत्र प्राप्ति के लिये प्रार्थना की। महर्षि ऋचीक ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करके दोनों के लिये अलग-अलग मन्त्रों से चरु पकाया और स्नान करने के लिये चले गये। सत्यवती की माँ ने यह समझकर कि ऋषि ने अपनी पत्नी के लिये श्रेष्ठ चरु पकाया होगा, उससे वह चरु माँग लिया। इस पर सत्यवती ने अपना चरु तो माँ को दे दिया और माँ का चरु स्वयं खा गयी। जब ऋचीक मुनि को इस बात का पता चला, तब उन्होंने अपनी पत्नी सत्यवती से कहा कि ‘तुमने बड़ा अनर्थ कर डाला। अब तुम्हारा पुत्र तो लोगों को दण्ड देने वाला घोर प्रकृति का होगा और तुम्हारा भाई एक श्रेष्ठ ब्रह्मवेत्ता’। सत्यवती ने ऋचीक मुनि को प्रसन्न किया और प्रार्थना की कि ‘स्वामी! ऐसा नहीं होना चाहिये।'

तब उन्होंने कहा- ‘अच्छी बात है। पुत्र के बदले तुम्हारा पौत्र वैसा (घोर प्रकृति का) होगा।’ समय पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ। सत्यवती समस्त लोकों को पवित्र करने वाली परमपुण्यमयी ‘कौशिकी’ नदी बन गयी। रेणु ऋषि की कन्या थी रेणुका। जमदग्नि ने उसका पाणिग्रहण किया। रेणुका के गर्भ से जमदग्नि ऋषि के वसुमान् आदि कई पुत्र हुए। उनमें से सबसे छोटे परशुराम जी थे। उनका यश सारे संसार में प्रसिद्ध है। कहते हैं कि हैहय वंश का अन्त करने के लिये स्वयं भगवान ने ही परशुराम के रूप में अंशावतार ग्रहण किया था। उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियहीन कर दिया। यद्यपि क्षत्रियों ने उनका थोडा-सा ही अपराध किया था-फिर भी वे लोग बड़े दुष्ट, ब्राह्मणों के अभक्त, रजोगुणी और विशेष करके तमोगुणी हो रहे थे। यही कारण था कि वे पृथ्वी के भार हो गये थे और इसी के फलस्वरूप भगवान परशुराम ने उनका नाश करके पृथ्वी का भार उतार दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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