श्रीमद्भागवत महापुराण षष्ठ स्कन्ध अध्याय 4 श्लोक 1-15

षष्ठ स्कन्ध: चतुर्थ अध्याय

Prev.png

श्रीमद्भागवत महापुराण: षष्ठ स्कन्ध: चतुर्थ अध्यायः श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद


दक्ष के द्वारा भगवान् की स्तुति और भगवान् का प्रादुर्भाव

राजा परीक्षित ने पूछा- भगवन्! आपने संक्षेप से (तीसरे स्कन्ध में) इस बात का वर्णन किया कि स्वयाम्भुव मन्वन्तर में देवता, असुर, मनुष्य, सर्प और पशु-पक्षी आदि की सृष्टि कैसे हुई। अब मैं उसी का विस्तार जानना चाहता हूँ। प्रकृति आदि कारणों के भी परम कारण भगवान् अपनी जिस शक्ति से जिस प्रकार उसके बाद की सृष्टि करते हैं, उसे जानने की भी मेरी इच्छा है।

सूत जी कहते हैं- शौनकादि ऋषियो! परमयोगी व्यासनन्दन श्रीशुकदेव जी ने राजर्षि परीक्षित का यह सुन्दर प्रश्न सुनकर उनका अभिनन्दन किया और इस प्रकार कहा।

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- राजा प्राचीनबर्हि के दस लड़के-जिनका नाम प्रचेता था-जब समुद्र से बाहर निकले, तब उन्होंने देखा कि हमारे पिता के निवृत्तिपरायण हो जाने से सारी पृथ्वी पेड़ों से घिर गयी है। उन्हें वृक्षों पर बड़ा क्रोध आया। उनके तपोबल ने तो मानो क्रोध की आग में आहुति ही डाल दी। बस, उन्होंने वृक्षों को जला डालने के लिये अपने मुख से वायु और अग्नि की सृष्टि की।

परीक्षित! जब प्रचेताओं की छोड़ी हुई अग्नि और वायु उन वृक्षों को जलाने लगी, तब वृक्षों के राजाधिराज चन्द्रमा ने उनका क्रोध शान्त करते हुए इस प्रकार कहा- ‘महाभाग्यवान् प्रचेताओं! ये वृक्ष बड़े दीन हैं। आप लोग इनसे द्रोह मत कीजिये; क्योंकि आप तो प्रजा की अभिवृद्धि करना चाहते हैं और सभी जानते हैं कि आप प्रजापति हैं। महात्मा प्रचेताओं! प्रजापतियों के अधिपति अविनाशी भगवान् श्रीहरि ने सम्पूर्ण वनस्पतियों और ओषधियों को प्रजा के हितार्थ उनके खान-पान के लिये बनाया है। संसार में पंखों से उड़ने वाले चर प्राणियों के भोजन फल-पुष्पादि अचर पदार्थ हैं। पैर से चलने वालों के घास-तृणादि बिना पैर वाले पदार्थ भोजन हैं; हाथ वालों के वृक्ष-लता आदि बिना हाथ वाले और दो पैर वाले मनुष्यादि के लिये धान, गेहूँ आदि अन्न भोजन हैं। चार पैर वाले बैल, ऊँट आदि खेती प्रभृति के द्वारा अन्न की उत्पत्ति में सहायक हैं।

निष्पाप प्रेचाताओं! आपके पिता और देवाधिदेव भगवान् ने आप लोगों को यह आदेश दिया है कि प्रजा की सृष्टि करो। ऐसी स्थिति में आप वृक्षों को जला डालें, यह कैसे उचित हो सकता है। आप लोग अपना क्रोध शान्त करें और अपने पिता, पितामह, प्रपितामह आदि के द्वारा सेवित सत्पुरुषों के मार्ग का अनुसरण करें। जैसे माँ-बाप बालकों की, पलकें नेत्रों की, पति पत्नी की, गृहस्थ भिक्षुकों की और ज्ञानी अज्ञानियों की रक्षा करते हैं और उनका हित चाहते हैं- वैसे ही प्रजा की रक्षा और हित का उत्तरदायी राजा होता है। प्रचेताओं! समस्त प्राणियों के हृदय में सर्वशक्तिमान् भगवान् आत्मा के रूप में विराजमान हैं। इसलिये आप लोग सभी को भगवान् का निवास स्थान समझें। यदि आप ऐसा करेंगे तो भगवान् को प्रसन्न कर लेंगे। जो पुरुष हृदय के उबलते हुए भयंकर क्रोध को आत्मविचार के द्वारा शरीर में ही शान्त कर लेता है, बाहर नहीं निकलने देता, वह कालक्रम से तीनों गुणों पर विजय प्राप्त कर लेता है।

प्रचेताओं! इन दीन-हीन वृक्षों को और न जलाइए; जो कुछ बच रहे हैं, उनकी रक्षा कीजिये। इससे आपका कल्याण होगा। इस श्रेष्ठ कन्या का पालन इन वृक्षों ने ही किया है, इसे आप लोग पत्नी के रूप में स्वीकार कीजिये’।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः