श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 5 श्लोक 1-14

दशम स्कन्ध: पंचम अध्याय (पूर्वार्ध)

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श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: पंचम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद
गोकुल में भगवान का जन्म महोत्सव

श्री शुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! नन्दबाबा बड़े मनस्वी और उदार थे। पुत्र का जन्म होने पर तो उनका हृदय विलक्षण आनन्द से भर गया। उन्होंने स्नान किया और पवित्र होकर सुन्दर-सुन्दर वस्त्राभूषण धारण किये। फिर वेदज्ञ ब्राह्मणों को बुला कर स्वस्तिवाचन और अपने पुत्र का जातकर्म-संस्कार करवाया। साथ ही देवता और पितरों की विधिपूर्वक पूजा भी करवायी। उन्होंने ब्राह्मणों को वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित दो लाख गायें दान कीं। रत्नों और सुनहरे वस्त्रों से ढके हुए तिल के सात पहाड़ दान किये।[1] समय से[2], स्नान से[3], प्रक्षालन से [4], संस्कारों से [5], तपस्या से [6], यज्ञ से[7], दान से[8], और संतोष से [9]द्रव्य शुद्ध होते हैं। परन्तु आत्मा की शुद्धि तो आत्मज्ञान से ही होती है।

उस समय ब्राह्मण, सूत[10], मागध[11] और वंदीजन[12] मंगलमय आशीर्वाद देने तथा स्तुति करने लगे। गायक गाने लगे। भेरी और दुन्दुभियाँ बार-बार बजने लगीं। ब्रजमण्डल के सभी घरों के द्वार, आँगन और भीतरी भाग झाड़-बुहार दिये गये, उनमें सुगन्धित जल का छिड़काव किया गया; उन्हें चित्र-विचित्र, ध्वजा-पताका, पुष्पों की मालाओं, रंग-बिरंगे वस्त्र और पल्लवों की बन्दनवारों से सजाया गया। गाय, बैल और बछड़ों के अंगों में हल्दी-तेल का लेप कर दिया गया और उन्हें गेरू आदि रंगीन धातुएँ, मोरपंख, फूलों के हार, तरह-तरह के सुन्दर वस्त्र और सोने की जंजीरों से सजा दिया गया। परीक्षित! सभी ग्वाल बहुमूल्य वस्त्र, गहने, अँगरखे और पगड़ियों से सुसज्जित होकर और अपने हाथों में भेंट की बहुत-सी सामग्रियाँ ले-लेकर नन्दबाबा के घर आये।

यशोदा जी के पुत्र हुआ है, यह सुनकर गोपियों को भी बड़ा आनन्द हुआ। उन्होंने सुन्दर-सुन्दर वस्त्र, आभूषण और अंजन आदि से अपना श्रृंगार किया। गोपियों के मुखकमल बड़े ही सुन्दर जान पड़ते थे। उन पर लगी हुई कुमकुम ऐसी लगती मानो कमल की केसर हो। उनके नितम्ब बड़े-बड़े थे। वे भेंट की सामग्री ले-लेकर जल्दी-जल्दी यशोदा जी के पास चलीं। उस समय उनके पयोधर हिल रहे थे।

गोपियों के कानों में चमकती हुई मणियों के कुण्डल झिलमिला रहे थे। गले में सोने के हार[13] जगमगा रहे थे। वे बड़े सुन्दर-सुन्दर रंग-बिरंगे वस्त्र पहने हुए थीं। मार्ग में उनकी चोटियों में गुँथे हुए फूल बरसते जा रहे थे। हाथों में जड़ाऊ कंगन अलग ही चमक रहे थे। उनके कानों के कुण्डल, पयोधर और हार हिलते जाते थे। इस प्रकार नन्दबाबा के घर जाते समय उनकी शोभा बड़ी अनूठी जान पड़ती थी। नन्दबाबा के घर जाकर वे नवजात शिशु को आशीर्वाद देतीं ‘यह चिरजीवी हो, भगवन! इसकी रक्षा करो।’ और लोगों पर हल्दी-तेल से मिला हुआ पानी छिड़क देतीं तथा ऊँचे स्वर से मंगलगान करतीं थीं।

भगवान श्रीकृष्ण समस्त जगत के एकमात्र स्वामी हैं। उनके ऐश्वर्य, माधुर्य, वात्सल्य - सभी अनन्त हैं। वे जब नन्दबाबा के ब्रज में प्रकट हुए, उस समय उनके जन्म का महान उत्सव मनाया गया। उनमें बड़े-बड़े विचित्र और मंगलमय बाजे बजाये जाने लगे। आनन्द से मतवाले होकर गोपगण एक-दूसरे पर दही, दूध, घी और पानी उड़ेलने लगे। एक-दूसरे के मुँह पर मक्खन मलने लगे और मक्खन फेंक-फेंककर आनन्दोत्सव मनाने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कारों से ही गर्भशुद्धि होती है - यह प्रदर्शित करने के लिए अनेक दृष्टान्तों का उल्लेख करते हैं
  2. नूतनजल, अशुद्ध भूमि आदि
  3. शरीर आदि
  4. वस्त्रादि
  5. गर्भादि
  6. इन्द्रियादि
  7. ब्राह्मणादि
  8. धन-धान्यादि
  9. मन आदि
  10. पौराणिक
  11. वंश का वर्णन करने वाले
  12. समयानुसार उक्तियों से स्तुति करने वाले भाट। जैसा कि कहा है- 'सूता: पौराणिका> प्रोक्ता मागधा वंशशंसका:। वन्दिनस्त्वमलप्रज्ञा: प्रस्तावसदृशोक्तय:॥'
  13. हैकल या हुमेल

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