श्रीमद्भागवत महापुराण द्वादश स्कन्ध अध्याय 12 श्लोक 1-16

द्वादश स्कन्ध: द्वादश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: द्वादश स्कन्ध: द्वादश अध्यायः श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद


श्रीमद्भागवत की संक्षिप्त विषय-सूची

सूत जी कहते हैं- भगवद्भक्तिरूप महान् धर्म को नमस्कार है। विश्व विधाता भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार है। अब मैं ब्राह्मणों को नमस्कार करके श्रीमद्भागवतोक्त सनातन धर्मों का संक्षिप्त विवरण सुनाता हूँ।

शौनकादि ऋषियों! आप लोगों ने मुझसे जो प्रश्न किया था, उसके अनुसार मैंने भगवान विष्णु का यह अद्भुत चरित्र सुनाया। यह सभी मुनष्यों के श्रवण करने योग्य है। इस श्रीमद्भागवत महापुराण में सर्वपापहारी स्वयं भगवान श्रीहरि का ही संकीर्तन हुआ है। वे ही सबके हृदय में विराजमान, सबकी इन्द्रियों के स्वामी और प्रेमी भक्तों के जीवन धन हैं। इस श्रीमद्भागवत महापुराण में परम रहस्यमय-अत्यन्त गोपनीय ब्रह्मतत्त्व का वर्णन हुआ है। उस ब्रह्म में ही इस जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय की प्रतीति होती है। इस पुराण में उसी परमतत्त्व का अनुभवात्मक ज्ञान और उसकी प्राप्ति के साधनों का स्पष्ट निर्देश है।

शौनक जी! इस महापुराण के प्रथम स्कन्ध में भक्तियोग भलीभाँति निरूपण हुआ है और साथ ही भक्तियोग से उत्पन्न एवं उसको स्थिर रखने वाले वैराग्य का भी वर्णन किया गया है। परीक्षित की कथा और व्यास-नारद संवाद के प्रसंग से नारद चरित्र भी कहा गया है। राजर्षि परीक्षित ब्राह्मण का शाप हो जाने पर किस प्रकार गंगातट पर अनशन-व्रत लेकर बैठ गये और ऋषिप्रवर श्रीशुकदेव जी के साथ किस प्रकार उनका संवाद प्रारम्भ हुआ, यह कथा भी प्रथम स्कन्ध में ही है। योग धारणा के द्वारा शरीर त्याग की विधि, ब्रह्मा और नारद का संवाद, अवतारों की संक्षिप्त चर्चा तथा महत्तत्त्व आदि के क्रम से प्राकृतिक सृष्टि की उत्पत्ति, आदि विषयों का वर्णन द्वितीये स्कन्ध में हुआ है।

तीसरे स्कन्ध में पहले-पहल विदुर जी और उद्धव जी के, तदनन्तर विदुर तथा मैत्रय जी के समागम और संवाद का प्रसंग है। इसके पश्चात् पुराणसंहिता के विषय में प्रश्न है और फिर प्रलयकाल में परमात्मा की प्रकार स्थित रहते हैं, इसका निरूपण है। गुणों के क्षोभ से प्राकृतिक सृष्टि और महत्तत्त्व आदि सात प्रकृति-विकृतियों के द्वारा कार्य-सृष्टि का वर्णन है। इसके बाद ब्राह्मण की उत्पत्ति और उसमें विराट् पुरुष की स्थिति का स्वरूप समझाया गया है। तदनन्तर स्थूल और सूक्ष्म काल का स्वरूप, लोक-पद्म की उत्पत्ति, प्रलय-समुद्र से पृथ्वी का उद्धार करते समय वराह भगवान के द्वारा हिरण्याक्ष का वध; देवता, पशु, पक्षी और मनुष्यों की सृष्टि एवं रुद्रों की उत्पत्ति का प्रसंग है। इसके पश्चात् उस अर्द्धनारी-नर के स्वरूप का विवेचन है, जिससे स्वायम्भुव् मनु और स्त्रियों की अत्यन्त उत्तम आद्य प्रकृति शतरूपा का जन्म हुआ था। कर्दम प्रजापति का चरित्र, उनसे मुनि पत्नियों का जन्म, महात्मा भगवान कपिल का अवतार और फिर कपिल देव तथा उनकी माता देवहूति के संवाद का प्रसंग आता है।

चौथे स्कन्ध में मरीचि आदि नौ प्रजापतियों की उत्पत्ति, दक्ष्यज्ञ का विध्वंस राजर्षि ध्रुव एवं पृथु का चरित्र तथा प्राचीनबार्हि और नारद जी के संवाद का वर्णन है। पाँचवे स्कन्ध में प्रियव्रत का उपाख्यान, नाभि, ऋषभ और भरत के चरित्र, द्वीप, वर्ष, समुद्र, पर्वत और नदियों का वर्णन; ज्योतिश्चक्र के विस्तर एवं पाताल तथा नरकों की स्थिति का निरूपण हुआ है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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