श्रीमद्भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध अध्याय 10 श्लोक 1-17

अष्टम स्कन्ध: दशमोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: दशम अध्यायः श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


देवासुर-संग्राम

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! यद्यपि दानवों और दैत्यों ने बड़ी सावधानी से समुद्र मन्थन की चेष्टा की थी, फिर भी भगवान् से विमुख होने के कारण उन्हें अमृत की प्रप्ति नहीं हुई।

राजन! भगवान् ने समुद्र को मथकर अमृत निकाला और अपने निजजन देवताओं को पिला दिया। फिर सबके देखते-देखते वे गरुड़ पर सवार हुए और वहाँ से चले गये। जब दैत्यों ने देखा कि हमारे शत्रुओं को तो बड़ी सफलता मिली, तब वे उनकी बढ़ती सह न सके। उन्होंने तुरंत अपने हथियार उठाये और देवताओं पर धावा बोल दिया। इधर देवताओं ने एक तो अमृत पीकर विशेष शक्ति प्राप्त कर ली थी और दूसरे उन्हें भगवान् के चरणकमलों का आश्रय था ही। बस, वे भी अपने अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित हो दैत्यों से भिड़ गये।

परीक्षित! क्षीरसागर के तट पर बड़ा ही रोमांचकारी और अत्यन्त भयंकर संग्राम हुआ। देवता और दैत्यों की वह घमासान लड़ाई ही ‘देवासुर संग्राम’ के नाम से कही जाती है। दोनों ही एक-दूसरे के प्रबल शत्रु हो रहे थे, दोनों ही क्रोध से भरे हुए थे। एक-दूसरे को आमने-सामने पाकर तलवार, बाण और अन्य अनेकानेक अस्त्र-शस्त्रों से परस्पर चोट पहुँचाने लगे। उस समय लड़ाई में शंख, तुरही, मृदंग, नगारे और डमरू बड़े जोर से बजने लगे; हाथियों की चिग्घाड़, घोड़ों की हिनहिनाहट, रथों घरघराहट और पैदल सेना की चिल्लाहट से बड़ा कोलाहल मच गया। रणभूमि में रथियों के साथ रथी, पैदल के साथ पैदल, घुड़सवारों के साथ घुड़सवार एवं हाथी वालों के साथ हाथी वाले भिड़ गये। उसमें से कोई-कोई वीर ऊँटों पर, हाथियों पर और गधों पर चढ़कर लड़ रहे थे तो कोई-कोई गौरमृग, भालू, बाघ और सिंहों पर। कोई-कोई सैनिक गिद्ध, कंक, बगुले, बाज और भास पक्षियों पर चढ़े हुए थे तो बहुत-से तिमिंगिल मच्छ, शरभ, भैंसे, गैड़ें, बैल, नीलगाय और जंगली साँड़ों पर सवार थे। किसी-किसी ने सियारिन, चूहे, गिरगिट और खरहों पर ही सवारी कर ली थी तो बहुत-से मनुष्य, बकरे, कृष्णसार मृग, हंस और सूअरों पर चढ़े थे। इस प्रकार जल, स्थल एवं आकाश में रहने वाले तथा देखने में भयंकर शरीर वाले बहुत-से प्राणियों पर चढ़कर कई दैत्य दोनों सेनाओं में आगे-आगे घुस गये।

परीक्षित! उस समय रंग-बिरंगी पताकाओं, स्फटिक मणि के समान श्वेत निर्मल छत्रों, रत्नों से जड़े हुए दण्ड वाले बहुमूल्य पंखों, मोरपंखों, चँवरों और वायु से उड़ते हुए दुपट्टों, पगड़ी, कलँगी, कवच, आभूषण तथा सूर्य की किरणों से अत्यन्त दमकते हुए उज्ज्वल शस्त्रों एवं वीरों की पंक्तियों के कारण देवता और असुरों की सेनाएँ ऐसी शोभायमान हो रही थीं, मानो जल-जन्तुओं से भरे हुए दो महासागर लहरा रहे हों। परीक्षित! रणभूमि में दैत्यों के सेनापति विरोचनपुत्र बलि मय दानव के बनाये हुए वैहायस नामक विमान पर सवार हुए। वह विमान चलाने वाले की जहाँ इच्छा होती थी, वहीं चला जाता था। युद्ध की समस्त सामग्रियाँ उसमें सुसज्जित थीं। परीक्षित! वह इतना आश्चर्यमय था कि कभी दिखलायी पड़ता तो कभी अदृश्य हो जाता। वह इस समय कहाँ है-जब इस बात का अनुमान भी नहीं किया जा सकता था, तब बतलाया तो कैसे जा सकता था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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