श्रीमद्भागवत महापुराण षष्ठ स्कन्ध अध्याय 8 श्लोक 1-15

षष्ठ स्कन्ध: अष्टम अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: षष्ठ स्कन्ध: अष्टम अध्यायः श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद


नारायण कवच का उपदेश

राजा परीक्षित ने पूछा- भगवन्! देवराज इन्द्र ने जिससे सुरक्षित होकर शत्रुओं की चतुरंगिणी सेना को खेल-खेल में- अनायास ही जीतकर त्रिलोकी की राजलक्ष्मी का उपभोग किया, आप उस नारायण कवच को मुझे सुनाइये और यह भी बतलाइये कि उन्होंने उससे सुरक्षित होकर रणभूमि में किस प्रकार आक्रमणकारी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की।

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! जब देवताओं ने विश्वरूप को पुरोहित बना लिया, तब देवराज इन्द्र के प्रश्न करने पर विश्वरूप ने उन्हें नारायण कवच का उपदेश किया। तुम एकाग्रचित्त से उसका श्रवण करो।

विश्वरूप ने कहा- देवराज इन्द्र! भय का अवसर उपस्थित होने पर नारायण कवच धारण करके अपने शरीर की रक्षा कर लेनी चाहिये। उसकी विधि यह है कि पहले हाथ-पैर धोकर आचमन करे, फिर हाथ में कुश की पवित्री धारण करके उत्तर मुँह बैठ जायें। इसके बाद कवच धारणपर्यन्त और कुछ न बोलने का निश्चय करके पवित्रता से ‘ॐ नमो नारायणाय’ और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’- इन मन्त्रों के द्वारा हृदयादि अंगन्यास तथा अंगुष्ठादि करन्यास करे। पहले ‘ॐ नमो नारायणाय’ इस अष्टाक्षर मन्त्र के ॐ आदि आठ अक्षरों का क्रमशः पैरों, घुटनों, जाँघों, पेट, हृदय, वक्षःस्थल, मुख और सिर में न्यास करे अथवा पूर्वोक्त मन्त्र के मकार से लेकर ॐकार पर्यन्त आठ अक्षरों का सिर से आरम्भ करके उन्हीं आठ अंगों में विपरीत क्रम से न्यास करे।

तदनन्तर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’- इस द्वादशाक्षर मन्त्र के ॐ आदि बारह अक्षरों का दायीं तर्जनी से बायीं तर्जनी तक दोनों हाथ की आठ अँगुलियों और दोनों अँगूठों की दो-दो गाँठों में न्यास करे। फिर ’ॐ विष्णवे नमः’ इस मन्त्र के पहले अक्षर ‘ॐ’ का हृदय में ‘वि’ का ब्रह्मरन्ध्र में, ‘ष्’ का भौंहों के बीच में, ‘ण’ का चोटी में, ‘वे’ का दोनों नेत्रों में और ‘न’ का शरीर की सब गाँठों में न्यास करे। तदनन्तर ‘ॐ मः अस्त्राय फट्’ कहकर दिग्बन्ध करे। इस प्रकार न्यास करने से इस विधि को जानने वाला पुरुष मन्त्रस्वरूप हो जाता है। इसके बाद समग्र, ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्य से परिपूर्ण इष्टदेव भगवान् का ध्यान करे और अपने को भी तदरूप ही चिन्तन करे। तत्पश्चात् विद्या, तेज और तपःस्वरूप इस कवच का पाठ करे-

भगवान् श्रीहरि गरुड़ जी की पीठ पर अपने चरणकमल रखे हुए हैं। अणिमादि आठों सिद्धियाँ उनकी सेवा कर रही हैं। आठ हाथों में शंख, चक्र, ढाल, तलवार, गदा, बाण, धनुष और पाश (फंदा) धारण किये हुए हैं। वे ही ॐकारस्वरूप प्रभु सब प्रकार से, सब ओर से मेरी रक्षा करें। मत्स्यमूर्ति भगवान् जल के भीतर जलजन्तुओं से और वरुण के पाश से मेरी रक्षा करें। माया से ब्रह्मचारी का रूप धारण करने वाले वामन भगवान् स्थल पर और विश्वरूप श्रीत्रिविक्रम भगवान् आकाश में मेरी रक्षा करें।

जिनके घोर अट्टहास से सब दिशाएँ गूँज उठी थीं और गर्भवती दैत्यपत्नियों के गर्भ गिर गये थे, वे दैत्य-यूथपतियों के शत्रु भगवान् नृसिंह किले, जंगल, रणभूमि आदि विकट स्थानों में मेरी रक्षा करें। अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण करने वाले यज्ञमूर्ति वराह भगवान् मार्ग में, परशुराम जी पर्वत के शिखरों पर और लक्ष्मण जी के सहित भरत के बड़े भाई भगवान् रामचन्द्र प्रवास के समय मेरी रक्षा करें।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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